कितने नादान हैं, वो लोग
जो बाँधना चाहते हैं
संबंधों को
रिश्तों की परिभाषा में।
संबंध आदि से चला आ रहा
नाता है, कभी नहीं मिटता।
बना रहता है
एक आत्मा का दूसरी आत्मा से
सदियों सदियों तक।
रिश्तों की दायरा सीमित है
और परिभाषा संकीर्ण।
इसमें ढालने के लिये
संबंधों को काट छाँट कर
छोटा करना पड़ेगा,
और उनकी हत्या हो जायेगी।
अच्छा हो, वो छोड़ दें अपना प्रयास।
स्वच्छन्द जीने दें
संबंधों को।
रिश्तों से परे, दूर रहने दें उनको
किसी भी
कलुषित प्रदूषित भाव से दूर
पवित्र, पुनीत, पावन बन्धन में।
2 टिप्पणियां:
सुन्दर रचना है।
आपकी लिखी हुई हर रचना सुन्दर और भावुक होती है आप इसी प्रकार हमेशा लिखते रहिये
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