सोमवार, 5 अक्तूबर 2020

कितने निष्ठुर हो तुम

कितने निष्ठुर हो तुम 

किसी की सुनते नहीं हो 
किसी को देखते नहीं हो 
कोई कितना भी चीखे 
तुम्हें कोई चिंता नहीं, परवाह नहीं 

किसी की मृत्यु का समाचार 
तुम्हें कोई अंतर नहीं पड़ता 
वो मर गया – अपनी बला से 
उसको मार दिया – उनकी बला से 

तुम देखते तो होगे सब कुछ 
सुनते होगे जनता का शोर 
कैसे सह लेते हो सब 
फिर भी चुप रह जाते हो 

समझते हो सहनशील हो 
नहीं सहनशील नहीं हो 
बस संवेदनहीन हो तुम 
बहुत निष्ठुर हो 

तुम बड़े हो, 
दिल को बड़ा करो ! 
अपने आप से पूछो 
– क्यों हो तुम ? 
   इतने निष्ठुर क्यों हो तुम?

बिचारी मर गई

वो बच्ची मर गई
मर गयी य मार दी गई ?

मुझे नहीं पता

किसी की मृत्य का समाचार हो 
हत्या हो, बलात्कार हो, राहजनी हो 
तुम को अंतर नहीं पड़ता 
तुम सुन लेते हो, चुप रहते हो 

पता करते हो 
कहाँ हुआ किसने किया ? 
क्या दल था, क्या धर्म था ? 
जाति समीकरण क्या था ? 
किस जगह हुआ, किस प्रांत में हुआ ? 
तुम सरकार में हो य विपक्ष में ? 

सरकार में हो – चुप रहते हो 
विपक्ष में हो – डंडा डोली लेकर लग गए 
बाल की खाल निकालो 
खाल के बाल निकालो 
न मृत की अस्मिता की चिंता 
न परिवार की भावना का ध्यान 
गिद्ध हो नोच कर खाओ 

सभी समीकारण लगा लो 
अपना हानी-लाभ जोड़ लो 
सत्ता की लड़ाई है, करो 
सत्ता से लड़ाई है, करो 
सत्ता पक्ष में हो, रहो 
विपक्ष में हो, रहो 

अपनी सभ्यता न भूलो 
अपनी संस्कृति न भूलो 
बस सदैव ध्यान में रहे 
न्याय के पक्ष में रहो 
धर्म के पक्ष में रहो 
इनके विपक्ष में कभी न हो 

जो चली गई उसका ध्यान करो 
जब जीवित थी तुमने कुछ नहीं दिया 
जब तड़प कर मर गयी 
पार्थिव शरीर का मान नहीं किया 

मृत है अब – राम नाम सत्य है 
अब तो राख भी नहीं बची 
अब तो छोड़ दो उसको 
अब तो सम्मान दो उसको 
अब तो न्याय दो उसको 

महाभारत को मत भूलो 
धर्म के पक्ष में रहो 
न्याय के पक्ष में रहो 
न्याय दो उसको 
न्याय दो उसको

रविवार, 10 मई 2020

मेरे मित्र श्री मुकुल मरवाह से कुछ शेर और शायरी पर आदान प्रदान होता रहता है तो उस प्रवाह में कुछ शेर आ जाते हैं । अब यह तय किया है कि उन्हें यहाँ लिख दिया जाए। 

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ज़िन्दगी में जब तलक जिगर में दिल्लगी होगी 
ज़िन्दगी से ज़िन्दगी कभी भी कम नहीं होगी

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पाक सफ़ा हैं महफ़िल में वो जो शेर कहते हैं
गुनहगार बस हम ही हैं जो मुक़र्रर कहते हैं

शनिवार, 14 मार्च 2020

कोरोना किच्छू कोरेना


क्या लिखूं मैं सोच रहा हूं
लिख दूं क्या जो देख रहा हूं? 
नकाब पोश ये लोग यहां हैं
मुंह पर कपड़ा बंधा हुआ है
घबराहट चेहरे पर दिखती
हाथ हमेशा धोते रहते हैं

क्यों करते हैं ये सब ऐसा?

कोरोना का भूत है छाया
चीन से चल कर यहां है आया
तीन माह बस उमर है इसकी
दुनिया भर पर पकड़ है इसकी
इंग्लैंड, अमरीका, फ्रांस और रूस
इटली में सबको दिया है ठूंस

भारत में भी घुस आया है
पर समझ नहीं हमको आया है
क्या कर लेगा हम सब का ये?
सुनते हम सब बचपन से हैं
मां कहती थी, बापू कहता था
भाई बहन भी कहते रहेते थे
- ये करोना, वो करोना 
बड़ा हुआ फिर लगी नौकरी
सोचा इससे छुट जाऊंगा
आफिस पहुंचा बॉस ने बोला
- ये करोना, वो करोना 

फिर शादी की बारी आयी
राजा बन घोड़े पर बैठा
सोचा अब मन की कर लूंगा
सपना मेरा टूट गया फिर
जब पत्नी ने बोला मुझसे
- ये करोना, वो करोना 

इतना सब हम सुनते आये हैं
अभ्यस्त हुये हैं हम सब इसके
खाल हमारी हो गयी मोटी
जहां भी चाहे ये जायेगा
हमें नही कुछ कर पायेगा

विश्वास मुझे है ये पूरा
- कोरोना किच्छू कोरेना
कोरोना किच्छू कोरेना

मंगलवार, 28 जनवरी 2020

हम देखेंगे

हम देखेंगे
हाँ हम देखेंगे
शाहीन बाग की नौटंकी
हम देखेंगे, जी हाँ हम देखेंगे

बहला फुसला कर लाये
कुछ भूले भटके आये
इन के पीछे छिपे हुए
सब देश द्रोहियों को
हम देखेंगे, जी हाँ हम देखेंगे

नये नहीं हैं ये सब
बस भेष बदलकर आते हैं
एवार्ड बापसी याद है तुमको
कुछ लोगों को डर लगता था
आज़ादी ली हाथों में अपने
फिर मार पीट की सड़कों पर
गाड़ी, दफ़्तर सब जला दिया
इन सबको हम देखेंगे
हाँ हम इन सबको देखेंगे

बच्चे, बूड़े, महिलाएँ हैं
सड़कों पर बैठे दुख पाते हैं
इनकी आड़ लिये बैठे हैं जो
बस ख़र्चा इनका देते हैं
वो छिप कर कब तक बैठेंगे
हम ड़ूंड निकालेंगे उनको
फिर हम देखेंगे,
जी हाँ उन सब को हम देखेंगे

देशद्रोही हैं, आतंकी हैं
स्लीपर सैल के कर्ता हैं
दुश्मन के टुकड़ों पर पलने वाले
टुकड़े करने की धमकी देते हैं
इन सब गद्दारों को हम देखेंगे, 

जी हाँ हम इन सब को देखेंगे

हम देखेंगे
जी हाँ हम देखेंगे