शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

कौन हो तुम, तुम क्या हो

असमंजस में पड़ा – पड़ा मैं सोच रहा हूं
क्या बोलूं तुम को
कैसे बोलूं तुम को - तुम क्या हो ?

हमने तुमको दिल में रखा है
फूलों की शैय्या पर पाला है 
धन आदर सत्कार दिया है पूरा
बरसों अपने सर पर बिठलाया है
नहीं बराबरी पर नीचे लाये तुमको
कोई अनुमान नहीं लगाया हमने
यूं समझो बस बरसों पूजा है तुमको
स्तब्ध रह गये हैं हम सब यह सुन कर
तुमको तो डर लगता है

हम प्रगति पथ क्या हुए अग्रसर
तुम इसी बात पर तुनक गये
ख़ुशहाली पर तुमको डर लगता है ?

नहीं कोई भी डर था तुमको !
जब कसब कसाई आया था
निहत्थे, बेकसूरों को भूना था
दो सौ को गोली से मारा था

डर तुमको नहीं लगा था कोई !
लोकल पर जब बम डाला था
बेगुनाह लोगों को मारा था
अनाथ किया था कितनों को
बेवा था कितनों को कर डाला

डर नहीं लगा था तुमको कोई !
धीर सैनिकों को पत्थर मारा था
पंडितों को लूटा था जमकर
उनकी लाशों को सड़कों पर डाला
बेइज़्ज़त कर बेघर कर डाला था

डर नहीं लगा तुमको कोई !
जब टुकड़े करने का नारा आया
आतंकी के मरने पर शोक मनाया
भक्तों को बन्द किया डिब्बे में
ज़िन्दा जला दिया उनको
फिर नाचे गाये जश्न मनाया

तुम भी देखा था वो सब
डर नहीं लगा था तुमको कोई !
तुम चुप थे !

अब सूरज चमका है
अन्धकार भागा है
आशा की किरणें फूटी हैं
भाग्य ने ली है अंगड़ाई
प्रगति पथ जायेंगे
मन में विश्वास जगा
देश बढ़ा है आगे
तुमको डर लगता है ?

काहे का डर लगता है?
अब ख़ुशहाल बनेंगे सब
तुमको डर लगता है ?

क्या बोलूँ तुमको
कैसे देश भक्त कहूँ तुमको
देश प्रगति से डरते हो तुम?
तुमको तो डर लगता है?

शर्म मुझे आ जाती है
कैसे बोलूं तुमको – तुम क्या हो
क्यों दूषित कर डालूं मुंह अपना मैं
क्यों बोलूं तुम क्या हो

शत-शत प्रणाम तुमको
तुमने मुंह खोला है तुम बोले हो
सच से पहचान करा दी सबकी
अब सब को साफ दिखाई देता है
विदित हुआ है अब सब को
सच में तुम क्या हो
पर्दे के अंदर क्या थे
पर्दे के बाहर क्या हो
जैसे हो अब दिखते हो

शत्‌- शत्‌ प्रणाम तुमको
तुमने मुंह खोला है तुम बोले हो
विदित हुआ है अब सब को
कौन हो तुम, तुम क्या हो
शत्‌- शत्‌ प्रणाम तुमको
शत्‌- शत्‌ प्रणाम तुमको

शनिवार, 1 दिसंबर 2018

प्रश्न तुम पूछा करो, मैं बताऊँ नहीं

तुम प्रश्न करते हो
बार-बार करते हो
वो एक प्रश्न 
जिसका उत्तर नहीं देना

तुम नहीं जानते
उस प्रश्न का उत्तर?
एक दम साफ़ है
बस देना नहीं है

तुम सुन नहीं पाओगे
समझ में नहीं आयेगा
सच नहीं मानोगे उसे
स्वीकार नहीं होगा तुम्हें

रूठ जाओगे तुम 
चले जाओगे दूर कहीं
एकदम अकेला छोड़ कर
लौटने के लिये कभी

कितना मीठ भ्रम है 
यहाँ हाँ तो नहीं है
कहीं भी नहीं है
ज़िन्दगी हंसीन है 

तुम प्रश्न पूछते रहो
मैं उत्तर बताऊँ नहीं
तुम बस सोचते रहो
मैं समझ आऊँ नहीं

भ्रम ये मीठ बना ही रहे
तुम पूछा करो, मैं बताऊँ नहीं
है हाँ भी नहीं, और भी नहीं

तुम पूछा करो, मैं बताऊँ नहीं
मैं बताऊँ नहीं, मैं बताऊँ नहीं

गुरुवार, 29 नवंबर 2018

बच्चों से जंग

बच्चों से छिड़ी जंग भी अजब एक जंग है
जीतने में वो मज़ा कहां जो हारने में है। 

अथवा 

बच्चों से जंग भी अजब एक जंग है
जीतने में मज़ा नहीं वो जो हारने में है। 

बुधवार, 28 नवंबर 2018

लुटेरों को हमने देखा है

अगले ज़माने में लुटेरों की एक जमात को हमने देखा है 
कि अब तो पीर-फ़क़ीर पे भी शक-ओ-शुबा होता है।

अगले ज़माने में इतने लुटेरों को हमने देखा है
अब पीर-फ़क़ीर पे भी शक-ओ-शुबा होता है।

अगले ज़माने में इतने लुटेरे हमने देखे थे
अब पीर-फ़क़ीर पे शक-ओ-शुबा होता है।

अगले ज़माने में इतने लुटेरे को हमने देखा है 
कि पीर-फ़क़ीर पे भी शक-ओ-शुबा होता है।

अगले ज़माने में हमने देखा है लुटेरों की पूरी जमात को देखा है
यकीन कैसे हो किसी पर पीर-फ़क़ीर पे भी शक-ओ-शुबा होता है।

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कई तरीके से इसे लिखा है 
बताएं कि कौन सा कैसा लगा 
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ख़ुदकुशी का मज़ा किसी को आप सिखलायेंगे क्या
ख़ुद तो हारे बैठे हैं आप किसी को सिखलायेंगे क्या 

ख़ुदकुशी का मज़ा किसी को आप सिखलायेंगे क्या
नाकामयाब रहे है आप किसी को सिखलायेंगे क्या 



शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

अहसास

एक अहसास है
वो आस-पास है

दिन-रात ये अहसास रहता है 
वो मेरे ही आस-पास रहता है 

गुरुवार, 22 नवंबर 2018

घोड़े की घास से यारी!!

कौन कहता है
घोड़े की घास से यारी नहीं होती

यारी होती है
बहुत यारी होती है
घोड़ा बहुत चाहता है उसे
वो घास को बहुत प्यार करता है
सोचता है उसके चारों तरफ घास हो
उसके पास ही रहना चाहता है
उसका गुज़ारा नहीं चलता उसके बिना

सुबह शाम चबाता है उसे
बस यही सोचता है
उसे मिला ले अपने में
विलीन कर ले अपने अंदर
एक हो जाये
दो आत्मा एक शरीर
बहुत प्यार करता है उसे

घोड़े की बहुत यारी है घास से
घोड़ा बहुत चाहता है उसे






क्या गम है?

तुम ही तो थे कि कहते थे, तुम हो तो क्या गम है?
तुम ही अब कहते हो, कि तुम हो ये ही तो गम है!

बुधवार, 14 नवंबर 2018

पत्थर का है तो हुआ करे, दिल तो है
बदनसीब हैं जिन्हें ये भी मयस्सर नहीं

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पत्थर का ही सही मगर दिल तो है
वो कितने हैं जिन्हें ये भी नसीब नहीं

शनिवार, 13 अक्तूबर 2018

क्या मेरा दर्द है


मुझको तो मर्ज़ है, और मर्ज़ का पूरा दर्द है
किसी को तवक्को ही नहीं, मेरा क्या दर्द है


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विश्व हॉस्पिस व पॉलियेटिव देखरेख दिवस पर लिखी
Written on the World Hospice & Palliative Care Day 

अधिकार हमेशा अपना रखना


मैं नहीं चाहता
तेरे मन पर अधिकार रहे मेरा अपना
तेरा मन तो है तेरा अपना

जब चाहो जो चाहो जैसे चाहो करना
करना जो चाहो, चाहो मत करना
बस मन पर अपने अपना काबू तुम रखना
फिर जो भी तुम चाहो करना, करना मत करना

जीवन में जब आ जाये कोई अपना
छा जाये कोई वो तुम पर चाहे जितना
यह अधिकार नहीं तुम उसको देना
बोले तुमको
-        क्या करना, कैसे करना, कब करना

मुश्किल हो कोई, आये कोई भी दुविधा
राय सभी की लेना, उसकी भी सुनना
बात सभी की धरना मन में, पूरा विश्लेषण करना
तब सोच समझ कर निर्णय अपने मन से ही लेना

याद रहे - तुम स्वतंत्र हो, हरदम ऐसे ही रहना
चाहे कोई आ जाये, कितना भी हो जाये अपना
मन पर अपने अधिकार हमेशा अपना ही रखना
मन पर अधिकार हमेशा अपना ही रखना

शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2018

धूप में तपिश नहीं तो क्या

धूप में तपिश नहीं तो क्या, उसकी रोशनी से काम ले
जो न मिला उसका क्या गिला, जो है उसको संवार ले

सोमवार, 13 अगस्त 2018

नहीं घटेगा बढ़ जायेगा

नहीं अगर मैं कुछ बोलूँ -
क्या घटता है मन में मेरे।
कैसे जानेगा कोई
क्या घटता है मन में मेरे ?

सच अगर नहीं बोलूँ - 
क्या घटता है मन में मेरे।
फिर कैसे जानेगा कोई
क्या घटता है मन में मेरे ?

सच तो यह है
जो घटता है मन में मेरे
थोड़ा आगे या पीछे
वैसा ही कुछ 
घटता है मन में तेरे।

अलग- अलग जब रहते हैं
नहीं पता मुझको चलता है
क्या घटता है मन में तेरे
तुझको भी कहां पता पड़ता है
क्या घटता है मन में मेरे

मुझको लगता है अच्छ हो 
हम जब मिल सब बैठैंगे
मिलजुल कर फिर सीखेंगे
तू मुझको बोले मैं तुझको बोलूं
मैं तुझसे सीखूं, तू मुझसे सीखे
अनुभव से अनुभव जुड़ जायेगा
नहीं घटेगा बढ़ जायेगा।

अनुभव से अनुभव जुड़ जायेगा
फिर नहीं घटेगा बढ़ जायेगा।


आदरणीय लोक सभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ताई ने अध्यक्षीय शोध कदम (अशोक - एस आर आई) की तीसरी वर्षगांठ पर जो कहा उसको लिखने की एक कोशिश 

गुरुवार, 11 जनवरी 2018

हार - जीत?

अपनों से जीते तो क्या जीते?, 
अपनों से हारे तो क्या हारे?
नदी जब सागर में जा मिले,
कौन जीते और कौन हारे?

विषेश: बहुत दिन से यह विचार रहा है, अब सोचा कि इसे लिख दिया जाये।