असमंजस में पड़ा – पड़ा मैं सोच रहा हूं
क्या बोलूं तुम को
कैसे बोलूं तुम को - तुम क्या हो ?
हमने तुमको दिल में रखा है
फूलों की शैय्या पर पाला है
धन आदर सत्कार दिया है पूरा
बरसों अपने सर पर बिठलाया है
नहीं बराबरी पर नीचे लाये तुमको
कोई अनुमान नहीं लगाया हमने
यूं समझो बस बरसों पूजा है तुमको
स्तब्ध रह गये हैं हम सब यह सुन कर
तुमको तो डर लगता है
हम प्रगति पथ क्या हुए अग्रसर
तुम इसी बात पर तुनक गये
ख़ुशहाली पर तुमको डर लगता है ?
नहीं कोई भी डर था तुमको !
जब कसब कसाई आया था
निहत्थे, बेकसूरों को भूना था
दो सौ को गोली से मारा था
डर तुमको नहीं लगा था कोई !
लोकल पर जब बम डाला था
बेगुनाह लोगों को मारा था
अनाथ किया था कितनों को
बेवा था कितनों को कर डाला
डर नहीं लगा था तुमको कोई !
धीर सैनिकों को पत्थर मारा था
पंडितों को लूटा था जमकर
उनकी लाशों को सड़कों पर डाला
बेइज़्ज़त कर बेघर कर डाला था
डर नहीं लगा तुमको कोई !
जब टुकड़े करने का नारा आया
आतंकी के मरने पर शोक मनाया
भक्तों को बन्द किया डिब्बे में
ज़िन्दा जला दिया उनको
फिर नाचे गाये जश्न मनाया
तुम भी देखा था वो सब
डर नहीं लगा था तुमको कोई !
तुम चुप थे !
अब सूरज चमका है
अन्धकार भागा है
आशा की किरणें फूटी हैं
भाग्य ने ली है अंगड़ाई
प्रगति पथ जायेंगे
मन में विश्वास जगा
देश बढ़ा है आगे
तुमको डर लगता है ?
काहे का डर लगता है?
अब ख़ुशहाल बनेंगे सब
तुमको डर लगता है ?
क्या बोलूँ तुमको
कैसे देश भक्त कहूँ तुमको
देश प्रगति से डरते हो तुम?
तुमको तो डर लगता है?
शर्म मुझे आ जाती है
कैसे बोलूं तुमको – तुम क्या हो
क्यों दूषित कर डालूं मुंह अपना मैं
क्यों बोलूं तुम क्या हो
शत-शत प्रणाम तुमको
तुमने मुंह खोला है तुम बोले हो
सच से पहचान करा दी सबकी
अब सब को साफ दिखाई देता है
विदित हुआ है अब सब को
सच में तुम क्या हो
पर्दे के अंदर क्या थे
पर्दे के बाहर क्या हो
जैसे हो अब दिखते हो
शत्- शत् प्रणाम तुमको
तुमने मुंह खोला है तुम बोले हो
विदित हुआ है अब सब को
कौन हो तुम, तुम क्या हो
शत्- शत् प्रणाम तुमको
शत्- शत् प्रणाम तुमको
क्या बोलूं तुम को
कैसे बोलूं तुम को - तुम क्या हो ?
हमने तुमको दिल में रखा है
फूलों की शैय्या पर पाला है
धन आदर सत्कार दिया है पूरा
बरसों अपने सर पर बिठलाया है
नहीं बराबरी पर नीचे लाये तुमको
कोई अनुमान नहीं लगाया हमने
यूं समझो बस बरसों पूजा है तुमको
स्तब्ध रह गये हैं हम सब यह सुन कर
तुमको तो डर लगता है
हम प्रगति पथ क्या हुए अग्रसर
तुम इसी बात पर तुनक गये
ख़ुशहाली पर तुमको डर लगता है ?
नहीं कोई भी डर था तुमको !
जब कसब कसाई आया था
निहत्थे, बेकसूरों को भूना था
दो सौ को गोली से मारा था
डर तुमको नहीं लगा था कोई !
लोकल पर जब बम डाला था
बेगुनाह लोगों को मारा था
अनाथ किया था कितनों को
बेवा था कितनों को कर डाला
डर नहीं लगा था तुमको कोई !
धीर सैनिकों को पत्थर मारा था
पंडितों को लूटा था जमकर
उनकी लाशों को सड़कों पर डाला
बेइज़्ज़त कर बेघर कर डाला था
डर नहीं लगा तुमको कोई !
जब टुकड़े करने का नारा आया
आतंकी के मरने पर शोक मनाया
भक्तों को बन्द किया डिब्बे में
ज़िन्दा जला दिया उनको
फिर नाचे गाये जश्न मनाया
तुम भी देखा था वो सब
डर नहीं लगा था तुमको कोई !
तुम चुप थे !
अब सूरज चमका है
अन्धकार भागा है
आशा की किरणें फूटी हैं
भाग्य ने ली है अंगड़ाई
प्रगति पथ जायेंगे
मन में विश्वास जगा
देश बढ़ा है आगे
तुमको डर लगता है ?
काहे का डर लगता है?
अब ख़ुशहाल बनेंगे सब
तुमको डर लगता है ?
क्या बोलूँ तुमको
कैसे देश भक्त कहूँ तुमको
देश प्रगति से डरते हो तुम?
तुमको तो डर लगता है?
शर्म मुझे आ जाती है
कैसे बोलूं तुमको – तुम क्या हो
क्यों दूषित कर डालूं मुंह अपना मैं
क्यों बोलूं तुम क्या हो
शत-शत प्रणाम तुमको
तुमने मुंह खोला है तुम बोले हो
सच से पहचान करा दी सबकी
अब सब को साफ दिखाई देता है
विदित हुआ है अब सब को
सच में तुम क्या हो
पर्दे के अंदर क्या थे
पर्दे के बाहर क्या हो
जैसे हो अब दिखते हो
शत्- शत् प्रणाम तुमको
तुमने मुंह खोला है तुम बोले हो
विदित हुआ है अब सब को
कौन हो तुम, तुम क्या हो
शत्- शत् प्रणाम तुमको
शत्- शत् प्रणाम तुमको
1 टिप्पणी:
Very nice. Very true. These pseudo-intellectuals must be exposed.
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