गुरुवार, 24 जनवरी 2019

मेरी मामी

मामी मेरी चली गयी
मृत्युलोक में छोड़ सभी को
स्वर्गलोक को चली गयी

मामीहै यह शब्द अनूठा
दो शब्दों का संगम है ये
हिन्दी अंग्रेज़ी मिलतीं हैं इसमें
तब है इसका रूप निखरता

माँअम्मा को कहते हम सब
यह हिन्दी का है शब्द अनूठा
मीअंग्रेज़ी में कहते मुझको
मतलब बिलकुल साफ़ सरल है
मामीमेरी माँ होती है

जन्म नहीं देती वो हमको
बस दिल में अपने वो रखती है
प्यार बहुत हमसे करती है

ऐसी ही मामी थी मेरी
वो मामी मेरी चली गयी
मृत्युलोक में छोड़ सभी को
स्वर्गलोक को चली गयी

मंगलवार, 22 जनवरी 2019

फुटकर

दर्द मिन्नत कशे दवा हो गया
कैंसर हुआ था दवा हो गया

दर्द हो तो मुकम्मल इलाज भी होना चाहिये
हर एक दर्द हद से गुजर कर दवा नहीं होता



  • ऊपर के दोनों मिर्ज़ा ग़लिब से माफ़ी माफ़ी मांग कर 
  •  

  • कैंसर जब भी आयेगा साथ दर्द भी लायेगा
    प्यार से सहलाओगे  तो दूर भाग वो जायेगा.


    कैंसर का दर्द है तो क्या हुआ
    प्यार से सहलाया तो हवा हुआ

    सोमवार, 7 जनवरी 2019

    हक़ीक़त के अफ़साने

    आपकी फ़ितरत ही कुछ ऐसी है, 
    कि आप चाहे भी जहाँ होंगे। 
    हक़ीक़त में जो किया था आपने,
    वो सब अफ़सानों में बयां होंगे

    दत्ता सर को समर्पित। 


    शनिवार, 5 जनवरी 2019

    चोर मचाये शोर

    चोर चोर चोर चोर
    चोर चोर की आवाज़ें रहीं थीं
    मैं भी भागा उस ओर
    पहुँचा तो दंग रह गया। 
    चोरों की जमात इकट्ठा थी
    चौकीदार को पीट रहे थे
    सब मिल कर पीट रहे थे
    चोर -चोर चिल्ला रहे थे

    घर के लोग निकल आये
    आस पड़ौस के निकल आये
    चौकीदार पर बरस पड़े
    लोगों का ध्यान बँट गया
    चोर घर में घुस गये
    सारा माल लूट लिया 
    सीना तान कर बाहर निकले 
    चौकीदार को फिर पीटा
    फिर फरार हो गये 
    जब तक लोगों को समझ आया
    देर हो गयी थी बहुत देर

    अब तो सब समझदार हैं 
    सब जानते हैं -
    चोर मचाये शोर। 

    गुरुवार, 3 जनवरी 2019

    रास्ते के कुत्ते

    जा रहा था मैं अकेला,
    रात अपने गाँव को।
    मिल गया मुझको अचानक,
    एक कुत्ता राह में।

    गुर्रा के फिर उसने कहा,
           - जाता कहाँ है रुक जरा।
             मैं खड़ा हूँ राह में
             मुझको तो तू सलाम कर।

    अर्ज़ कर आदाब उसको,
    मैं था कुछ आगे बढ़ा।
    गुर्रा के तब वो हो गया
    बीच राह में खड़ा।

    प्यार से मैंने कहा
            - क्यों? बता क्या हो गया।
    बोला - राह मैंने रोक दी है,
               मेरे लिये नज़राना तू ला।

    प्यार से मैंने कहा
          - तू है कुत्ता मैं आदमी
            तू जो उलझेगा अगर
            एक आदमी अनजान से
            तेरी शान होगी, रुतबा बढ़ेगा
            धाक तेरी जम जायेगी।
            और फिर सब दूर तक
            तू कुत्ता बड़ा कहलायेगा।

            मैं आदमी हूँ सीधा बहुत,
            काम मुझको और भी हैं।
            मैं जो उलझूँगा अगर,
            सीधा तो तू हो जायेगा
            पर काम मेरे जो पड़े हैं,
            वो अधूरे रह जायेंगे।

            इसलिए मैं बदल दूँगा,
            राह अपनी जान कर।
            तू खड़ा हो भौंकता रह,
            मैं तो चला अब गाँव को।

    कुत्ता तो फिर कुत्ता ही था,
    वो खड़ा हो भौंकता है।
    मैं चला जाता हूँ बचकर,
    मंज़िल की जानिब चैन से।

    तुम भी अगर कुत्ते को देखो
    जो भौंकता हो राह में।
    ध्यान में मंज़िल को रखना
    राह अपनी बदल देना।

    काम तुमको तो और भी होंगे,
    कुत्ते से फिर क्यों कर उलझना।

    कुत्ता तो फिर कुत्ता ही है,
    भौंकता वो ही रहेगा।
    जब तलक है जान उसमें,
    भौंकता वो ही रहेगा।
    जब तलक है जान उसमें,
    भौंकता वो ही रहेगा।

    जब मैं छोटा बच्चा था

    जब मैं छोटा बच्चा था
    सब कुछ कितना अच्छा था

    घर में मां थीं, बाबूजी थे
    दीदी-भैया सब के सब थे
    प्यार सभी कितना करते थे
    पाठशाला में अध्यापक थे
    कितना कुछ वो बतलाते थे
    - पढ़-लिख कर कुछ काम करो
    अपना भी कुछ नाम करो
    लोग कहेंगे कहां पढ़ा था
    हम बोलेंगे यहां पढ़ा था

    जो कुछ हमने जब पूछा उनसे
    हमको खोज सोच कर बतलाया
    और बार-बार फिर समझाया

    दुनियां अपनी छोटी सी थी
    इन सब का ही ध्यान हमें था
    बाकी का कुछ ज्ञान नहीं था
    हमको तब मालूम नहीं था
    नून-तेल का चक्कर क्या है
    आटे दाल का भाव कहां है
    उछल कूद की, पूरी मस्ती
    खाया - खेला चैन से सोये
    समय-समय पर सब था मिलता
    नहीं सताती हमें थी चिंता
    छोटी अपनी दुनिया थी वो
    कितनी सुंदर होती थी वो

    कभी-कभी सपना बुनते थे
    ये कर लेंगे, वो कर देंगे
    दुनिया तो मुट्ठी में होगी
    अपनी बस छुट्टी तब होगी

    न मालूम, न पता था हमको
    दुनिया सब कहते हैं किसको
    होता क्या है? दिखता क्या है? 
    ये अच्छा है, वो ठीक नहीं है
    इससे सुनना है, उसको कहना है
    ये करना है, वो नहीं है करना

    इन बातों का ज्ञान हुआ जब
    दुनिया पूरी बदल गयी तब
    बचपन के दिन हवा हुये तब
    नयी तरह के दिखते थे सब
    दिन भर असमंजस में रहता हूं
    - ये बदली है, मैं बदला हूं?
    अकसर मैं सोचा करता हूं

    कभी-कभी लगता है मुझको
    दुनिया अब भी वहीं थमी है
    हम ही बस अब बदल गये हैं

    वो देखो वो छोटा बच्चा
    वैसा ही है जैसे हम थे
    वही कूद है, वही है मस्ती
    वही मचलना, रोना-गाना
    आटे दाल का कहां पता है
    नून-तेल की नहीं है चिंता
    मां है उसकी, बाबूजी भी
    भाई-बहन हैं अध्यापक भी
    सब कुछ उसका वैसा ही है
    जैसे हम थे ये वैसे ही है

    बस नहीं रहे हैं हम अब बच्चे
    अब हम मां/बाबूजी, वो है बच्चा
    दुनिया अब भी वैसी ही है
    हम सब कितने बदल गये हैं

    दुनिया अब भी वैसी ही है
    हम सब ही तो बदल गये है
    हम सब ही तो बदल गये हैं