रविवार, 31 दिसंबर 2017

अफवाहें हैं, भड़काने की नाकाम कोशिश हैं

अफवाहें हैं सब
कोई हुक्म नहीं है किसी का
कि पाबंदियां लग जाएं सब ओर

हवाओं को है आज़ादी
बहें जिधर भी, जिस ओर वो चाहें
रफ्तार ले लें, वो जो उनके मन में आये

लहरें भी आज़ाद हैं
उठें और पटक लें सिर अपना
जितना वो चाहें
पत्थरों को तोड़ वो डालें
पाबंदी नहीं है कोई
किनारे लांघ लें और तोड़ डालें
जो कुछ राह में आये
पूरी छूट है उनको
कर लें अपनी मनमानी वो
धरा पर वो छा जायें

समुंदर से कहो – आज़ाद वो भी है
रोक नहीं है उस पर भी कोई
भर ले सैलाब अपने अंदर, जितना भी समा पाये
उछाल ले आये जितना वो चाहे
मचाले वो भी तबाही
जितनी उस के मन में आये

रोक नहीं है कोई किसी पर
कर लें सब, जो भी जिसके मन में आये

कोई हुक्म नहीं है किसी का
कि पाबंदियां लग जाएं
ये सब अफवाहें हैं
भड़काने की नाकाम कोशिश हैं

बस कि एक गुज़ारिश है –
कि किनारों की भी सुन लें
क्या कहर उन पर गुज़री है
क्यों वो दिन-रात रोते हैं?
तोड़ डाले हैं घर सभी के
जो मान करते थे समुंदर का
उसकी पूजा करते थे
हट के उससे दूर रहते थे
लहरें उठीं, और इतनी बड़ी
कि खा गयीं सभी को
दूर तलक पीछा किया, फिर मार डाला
जो भी हाथ में आया
नहीं है कोई हक उनको
इस धरा पर रहने का और जीने का?
कि आज़ादियां हैं –
बस लहरों को और समुंदर को

हवाओं को भी आज़ादियां हैं –
कर लें अपने मन की, मन में जो आये
बस कि ऐलान कर दो
कह दो परिंदों से -
नहीं है हक उन्हें कोई
कि वो घर अपना बना पायें
चार तिनके बीन कर पेड़ों पर बस जायें
नहीं है कोई हक उनको
कि चैन से रहें, अमन के गीत वो गायें
पालकर बच्चों को वो अपने
कोई सीख दे पायें
-    कि मिल-जुल कर रहना है

पाबंदियां नहीं हैं कोई
कि बस ये तकाज़ा इंसानियत का है
जब हम अपना हक जताने जायें
तो दूसरे का हक न मारा जाये

ये कोई पाबंदी नहीं, बस ज़हन में रखना कि
मेरा हक, मेरा घर, मेरा सलीका
मेरा मन, मेरा कुनबा, मेरा गांव
ये सब मेरा-मेरा कहने में
सिमट कर न रह जाऊं कहीं मैं
भूल ना जाऊं कहीं कि स्वच्छंद रहने में
खुद अपना कानून लिखने में
तबाह कितने हुए थे, घर कितने के उजाड़े थे

अजब ये लोग हैं
जो भड़काने की बात करते हैं
भूल जाते हैं - कि लहू कितनों का बहा था
कितने मरे थे, कितने बरबाद हो गये
कि जब कुछ लोग कहते थे –
कि बस आज़ाद मैं ही हूं
नहीं है कोई हक किसी दूसरे को
इस धरा पर सांस लेने का
ये मैं ही तय करूँगा
कौन जीयेगा, कौन मरेगा

याद रहे, यह धरती सभी की है
हक है सभी को इस पर रहने का
हक है सभी को खुल कर जीने का
हमें मिल-जुल कर रहना है
सब को सिखाना है -
हक है तुम्हें कि तुम हाथ अपना
घुमालो जिस ओर तुम चाहो
मगर ध्यान में तुम्हारे रहे हमेशा
कि चोट किसी दूसरे को न आये
और हक न किसी का मारा जाये

बस कि अफवाहें हैं
कोई पबन्दियां नहीं
आज़ादी है सभी को
कर लें जो भी उनके मन में आ जाये
ध्यान में अपने मगर रखना जरूर
कि चोट किसी दूसरे को न आये
कि चोट किसी दूसरे को न आये

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

चुप रहो, खुश रहो

पकड़ते क्यों हो उसे बार-बार
हाथ से फिसल जाता है
हर बार छूट जाता है
निकल जाते है पहुंच से दूर

छोड़ दो, उसको जाने दो
जिस राह जाये, जहां जाये
जाये, न जाये, वापस आये
जो करे उसकी मर्ज़ी
परेशान न हो, फिक्र न करो

उसका अपना वजूद है
अपनी चाह है, मन है
जीने की तमन्ना हैं
उड़ने का ढंग है
अपने उसूल हैं, सिद्धान्त हैं
खुद से जी लेगा
मन की कर लेगा
फिर अगर फुर्सत मिली,
शायद तुम्हारी सुन लेगा

तब तक धैर्य धरो
भगवान पर भरोसा रखो
समझ से काम लो
चुप रहो, खुश रहो
चैन से जियो,
आराम से रहो

मेरे बच्चे

तुम्हारा जन्म याद है मुझे
बड़ी धूम से मिठाई बाँटी थी मैंने
बचपन से देखा है तुम्हें
देखते ही देखते तुम बड़े हो गए
तुम्हारे अंदर का वह बालक
बड़ा आदमी बन गया
पर न जाने कहाँ खो गया

जब भी तुम कहते हो
कोई बात कड़वी झुँझला कर
सुन लेता हूँ चुप रहता हूँ
जब तुम करते हो कुछ
अभद्र, असहनीय व्यवहार
सह लेता हूँ चुप रहता हूँ
मैं तुमसे प्यार करता हूँ

भगवान से प्रार्थना करता हूँ
मैं तुमसे हार जाऊँ
तुम्हारे बच्चे मेरे बच्चों से अच्छे हों
तुम्हें ये दिन न देखने पड़ें
मैं तुम्हें बचपन से जानता हूँ
तुम सह नहीं पाओगे
ग़म से मर जाओगे
इसलिए मैं चाहता हूँ
मैं तुमसे हार जाऊँ
मेरे बच्चे ! मैं तुमसे हार जाऊँ।