अफवाहें हैं सब
कोई हुक्म नहीं है किसी का
कि पाबंदियां लग जाएं सब ओर
हवाओं को है आज़ादी
बहें जिधर भी, जिस ओर वो चाहें
रफ्तार ले लें, वो जो उनके मन में आये
लहरें भी आज़ाद हैं
उठें और पटक लें सिर अपना
जितना वो चाहें
पत्थरों को तोड़ वो डालें
पाबंदी नहीं है कोई
किनारे लांघ लें और तोड़ डालें
जो कुछ राह में आये
पूरी छूट है उनको
कर लें अपनी मनमानी वो
धरा पर वो छा जायें
समुंदर से कहो – आज़ाद वो भी है
रोक नहीं है उस पर भी कोई
भर ले सैलाब अपने अंदर, जितना भी समा पाये
उछाल ले आये जितना वो चाहे
मचाले वो भी तबाही
जितनी उस के मन में आये
रोक नहीं है कोई किसी पर
कर लें सब, जो भी जिसके मन में आये
कोई हुक्म नहीं है किसी का
कि पाबंदियां लग जाएं
ये सब अफवाहें हैं
भड़काने की नाकाम कोशिश हैं
बस कि एक गुज़ारिश है –
कि किनारों की भी सुन लें
क्या कहर उन पर गुज़री है
क्यों वो दिन-रात रोते हैं?
तोड़ डाले हैं घर सभी के
जो मान करते थे समुंदर का
उसकी पूजा करते थे
हट के उससे दूर रहते थे
लहरें उठीं, और इतनी बड़ी
कि खा गयीं सभी को
दूर तलक पीछा किया, फिर मार डाला
जो भी हाथ में आया
नहीं है कोई हक उनको
इस धरा पर रहने का और जीने का?
कि आज़ादियां हैं –
बस लहरों को और समुंदर को
हवाओं को भी आज़ादियां हैं –
कर लें अपने मन की, मन में जो आये
बस कि ऐलान कर दो
कह दो परिंदों से -
नहीं है हक उन्हें कोई
कि वो घर अपना बना पायें
चार तिनके बीन कर पेड़ों पर बस जायें
नहीं है कोई हक उनको
कि चैन से रहें, अमन के गीत वो गायें
पालकर बच्चों को वो अपने
कोई सीख दे पायें
- कि मिल-जुल कर रहना है
पाबंदियां नहीं हैं कोई
कि बस ये तकाज़ा इंसानियत का है
जब हम अपना हक जताने जायें
तो दूसरे का हक न मारा जाये
ये कोई पाबंदी नहीं, बस ज़हन में रखना कि
मेरा हक, मेरा घर, मेरा सलीका
मेरा मन, मेरा कुनबा, मेरा गांव
ये सब मेरा-मेरा कहने में
सिमट कर न रह जाऊं कहीं मैं
भूल ना जाऊं कहीं कि स्वच्छंद रहने में
खुद अपना कानून लिखने में
तबाह कितने हुए थे, घर कितने के उजाड़े थे
अजब ये लोग हैं
जो भड़काने की बात करते हैं
भूल जाते हैं - कि लहू कितनों का बहा था
कितने मरे थे, कितने बरबाद हो गये
कि जब कुछ लोग कहते थे –
कि बस आज़ाद मैं ही हूं
नहीं है कोई हक किसी दूसरे को
इस धरा पर सांस लेने का
ये मैं ही तय करूँगा
कौन जीयेगा, कौन मरेगा
याद रहे, यह धरती सभी की है
हक है सभी को इस पर रहने का
हक है सभी को खुल कर जीने का
हमें मिल-जुल कर रहना है
सब को सिखाना है -
बस कि अफवाहें हैं
कोई पबन्दियां नहीं
आज़ादी है सभी को
कर लें जो भी उनके मन में आ जाये
ध्यान में अपने मगर रखना जरूर
कि चोट किसी दूसरे को न आये
कि चोट किसी दूसरे को न आये
कोई हुक्म नहीं है किसी का
कि पाबंदियां लग जाएं सब ओर
हवाओं को है आज़ादी
बहें जिधर भी, जिस ओर वो चाहें
रफ्तार ले लें, वो जो उनके मन में आये
लहरें भी आज़ाद हैं
उठें और पटक लें सिर अपना
जितना वो चाहें
पत्थरों को तोड़ वो डालें
पाबंदी नहीं है कोई
किनारे लांघ लें और तोड़ डालें
जो कुछ राह में आये
पूरी छूट है उनको
कर लें अपनी मनमानी वो
धरा पर वो छा जायें
समुंदर से कहो – आज़ाद वो भी है
रोक नहीं है उस पर भी कोई
भर ले सैलाब अपने अंदर, जितना भी समा पाये
उछाल ले आये जितना वो चाहे
मचाले वो भी तबाही
जितनी उस के मन में आये
रोक नहीं है कोई किसी पर
कर लें सब, जो भी जिसके मन में आये
कोई हुक्म नहीं है किसी का
कि पाबंदियां लग जाएं
ये सब अफवाहें हैं
भड़काने की नाकाम कोशिश हैं
बस कि एक गुज़ारिश है –
कि किनारों की भी सुन लें
क्या कहर उन पर गुज़री है
क्यों वो दिन-रात रोते हैं?
तोड़ डाले हैं घर सभी के
जो मान करते थे समुंदर का
उसकी पूजा करते थे
हट के उससे दूर रहते थे
लहरें उठीं, और इतनी बड़ी
कि खा गयीं सभी को
दूर तलक पीछा किया, फिर मार डाला
जो भी हाथ में आया
नहीं है कोई हक उनको
इस धरा पर रहने का और जीने का?
कि आज़ादियां हैं –
बस लहरों को और समुंदर को
हवाओं को भी आज़ादियां हैं –
कर लें अपने मन की, मन में जो आये
बस कि ऐलान कर दो
कह दो परिंदों से -
नहीं है हक उन्हें कोई
कि वो घर अपना बना पायें
चार तिनके बीन कर पेड़ों पर बस जायें
नहीं है कोई हक उनको
कि चैन से रहें, अमन के गीत वो गायें
पालकर बच्चों को वो अपने
कोई सीख दे पायें
- कि मिल-जुल कर रहना है
पाबंदियां नहीं हैं कोई
कि बस ये तकाज़ा इंसानियत का है
जब हम अपना हक जताने जायें
तो दूसरे का हक न मारा जाये
ये कोई पाबंदी नहीं, बस ज़हन में रखना कि
मेरा हक, मेरा घर, मेरा सलीका
मेरा मन, मेरा कुनबा, मेरा गांव
ये सब मेरा-मेरा कहने में
सिमट कर न रह जाऊं कहीं मैं
भूल ना जाऊं कहीं कि स्वच्छंद रहने में
खुद अपना कानून लिखने में
तबाह कितने हुए थे, घर कितने के उजाड़े थे
अजब ये लोग हैं
जो भड़काने की बात करते हैं
भूल जाते हैं - कि लहू कितनों का बहा था
कितने मरे थे, कितने बरबाद हो गये
कि जब कुछ लोग कहते थे –
कि बस आज़ाद मैं ही हूं
नहीं है कोई हक किसी दूसरे को
इस धरा पर सांस लेने का
ये मैं ही तय करूँगा
कौन जीयेगा, कौन मरेगा
याद रहे, यह धरती सभी की है
हक है सभी को इस पर रहने का
हक है सभी को खुल कर जीने का
हमें मिल-जुल कर रहना है
सब को सिखाना है -
हक है तुम्हें कि तुम हाथ अपना
घुमालो जिस ओर तुम चाहो
मगर ध्यान में तुम्हारे रहे हमेशा
कि चोट किसी दूसरे को न आये
और हक न किसी का मारा जाये
बस कि अफवाहें हैं
कोई पबन्दियां नहीं
आज़ादी है सभी को
कर लें जो भी उनके मन में आ जाये
ध्यान में अपने मगर रखना जरूर
कि चोट किसी दूसरे को न आये
कि चोट किसी दूसरे को न आये
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