शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

चुप रहो, खुश रहो

पकड़ते क्यों हो उसे बार-बार
हाथ से फिसल जाता है
हर बार छूट जाता है
निकल जाते है पहुंच से दूर

छोड़ दो, उसको जाने दो
जिस राह जाये, जहां जाये
जाये, न जाये, वापस आये
जो करे उसकी मर्ज़ी
परेशान न हो, फिक्र न करो

उसका अपना वजूद है
अपनी चाह है, मन है
जीने की तमन्ना हैं
उड़ने का ढंग है
अपने उसूल हैं, सिद्धान्त हैं
खुद से जी लेगा
मन की कर लेगा
फिर अगर फुर्सत मिली,
शायद तुम्हारी सुन लेगा

तब तक धैर्य धरो
भगवान पर भरोसा रखो
समझ से काम लो
चुप रहो, खुश रहो
चैन से जियो,
आराम से रहो

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