शनिवार, 20 जून 2009

अभी कुछ देर है

वो दूर
कौन रो रहा है वहाँ?
क्यों रो रहा है वो?
उसका कोई मर गया है!
किसने मारा? क्यों मारा?
आखिर क्यों मारता है कोई किसी को!

वहाँ वो चीख रहा है
बन्द डिब्बे में जलता.
कराहता, तड़पता, छ्टपटाता.
पिंजड़े में कैद.
वो दूर वहाँ
वो मरता है
बन्द घर में जलता.

मरते हैं दोनों ओर
बस गरीब, निरीह, निसहाय, असमर्थ.

कोई कु्छ कहता क्यों नहीं?
कोई बचाता क्यों नहीं इन्हें?

मारने वाला बडा हो गया है.
बचाने वाला छोटा पड़ गया है.
रक्षक भक्षक बन गया है.
सिद्धर्थ की कहानी पलट गयी है?
हाँ सब कु्छ पलट गया है!


राम राज्य नहीं है यहाँ?
नहीं है!
है तो बस रावण की माया नगरी.
एक दु:स्वप्न सा लगता है.
द्वारिका नरेश अब नहीं हैं यहाँ !

वापस आयेंगे?
पाप का घडा भरने के बाद!
सौंवीं गलती के बाद
शिशुपाल का वध करने.

तब यह तक मुक्त है
मनमानी करने के लिये
रावण के भेष में
सीता हरण के लिये
जटायू से नहीं संभलेगा.
अवधेश के हाथों ही मरेगा.
पाप का घडा है
भरने के बाद ही फूटेगा
अभी शायद देर है.

आप कतार में हैं
आप प्रतीक्षा में रहें
रुकावट के लिये खेद है.
अभी कुछ देर है.



शुक्रवार, 19 जून 2009

गाँधीवाद

एक दिन
गाँधीवाद पर बहस हो रही थी.
हमारा विचार था
- हम गाँधीवाद से दूर जा रहे हैं
कुछ लोग कहते थे
- गाँधीवाद अब दूर नहीं !

मैंने सोचा
शायद मैं ही गलत सोचता हूँ.
कुछ दिन बाद वस्त्रों के दाम बढ़ने से
लोग लंगोटी पहनेगे.
जब भूख और मंहगायी कमर तोड़ देगी
तो लाठी का सहारा लेंगे.

फिर लोग उसी को
गाँधीवाद कहेंगे !!