मंगलवार, 11 मार्च 2008

चिडि़या को मत बंद करो तुम

आओ बच्चों तम्हें सुनाऊँ।
एक कहानी बहुत पुरानी ।।
नन्हीं सी एक चिडि़या रानी।
मेरे घर में आती थी ।।

कूक-कूक कर मुझे बुलाती।
किलकारी से घर भर जाती ।।
मीठे सुर में गाना गाती ।
हम सब का वो दिल बहलाती ।।

जब भी उसका मन करता था।
बहुत दूर वह उड़ जाती थी।।
भूख लगी तो घर को आती ।
वरना वो बाहर रह जाती ।।

एक दिवस को नटखट चुन्नू।
जाल बिछा कर बैठ गया।।
चिडि़या को उसने पकड़ लिया।
पिंजड़े में फिर जकड़ दिया।।

चिडि़या अब मुश्किल में थी।
चुन्नू के कब्जे में थी ।।
गाना उसने बन्द किया।
अनशन पानी ठान लिया ।।

चुन्नू ने उसको ललचाया।
लड्डू पेड़े खाने को लाया ।।
चिडि़या बिलकुल बदल गयी थी ।
सूरत उसकी उतर गयी थी ।।

चिडि़या थी मन की रानी।
आँखों में था उसके पानी।।
मैंने फिर पिंजड़ा खोला।
चिडि़या को बाहर छोड़ा।।

फुर से चिडि़या निकल गयी।
दूर डाल पर बैठ गयी।।
पहले उड़ ऊपर को जाती।
फिर गोता मार नीचे को आती।।

मीठे सुर में गाना गाती।
मकारीना नाच दिखाती।।
कितनी खुश चिडि़या रहती।
जो मन आया वो करती।।

एक बात की सीख करो तुम।
चिडि़या को मत बन्द करो तुम।।
जितनी खुश चिडि़या होगी।
उतने खुश तुम भी होगे।।

चिडि़या को मत बन्द करो तुम।
चिडि़या को मत बन्द करो तुम।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें