गुरुवार, 13 मार्च 2008

बेटी पराया धन नहीं होती

बेटी, पराया धन नहीं होती।
बेटी, कोई वस्तु नहीं, कोई चीज नहीं
जिसे रुपयों से तोलो।
वो अनमोल होती है।

हमारा अंग होती है।
एक सुन्दर गुडि़या होती है।
उसमें होता है एक मन
स्वच्छ, सुन्दर, निर्मल मन।
उसमें एक बहुत विशाल दिल होता है
दिल में भाव और प्यार होता है।
उसमें एक दिमाग होता है
जो स्थिति समझ सके, सच को पकड़ सके।
वो सोचती है, विचारती है,
हमारे घर को संवारती है
किलकारी से भर देती है।

फिर अपने घर को संवारती है,
किलकारी से भर देती है।
एक नया जीवन देती है।
बेटी, पराया धन नहीं होती।

ये नयी दुनिया शुरू करने वाली
कितनी सशक्त होती है,
कितनी सजीव होती है।
एक नया रूप देती है,
समाज को नया मोड़ देती है
सभ्यता का केन्द्र-बिन्दु होती है।
बेटी पराया धन नहीं होती।

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