गुरुवार, 13 मार्च 2008

मुंबई नगरी

यह महानगर बहुत बड़ा है।
यह सपनों की दुनिया है
सितारों की दुनिया है
सितारों के सपनों की दुनिया है।

यहाँ हर छोटे-बड़े शहर का,
गाँव का, कस्बे का आदमी
सपना लिये आता है।
नये सपने बनाता है।
सपने खरीदता है,
सपने बेचता है।
सपनों में ही रहता है।
और सपनों में ही खुश भी रहता है।

आप तो जानते हैं
सपने तो फिर सपने होते हैं
बहुत नाजुक होते हैं।
जरा नींद खुली तो टूट जाते है बेचारे।

इस नगरी के आदमी के साथ
यही होता है।
बेचारे की नींद खुलती है
तो सपने टूट जाते हैं।

नींद खुल जाये सपना टूट जाये
तो बेचारा क्या करे?
आँख मूंद कर सो जाये
फिर नये सपने में खो जाये?
या जाग जाये, उठ कर बैठ जाये
नींद को भगा दे, यथार्थ में जी ले?

सच बहुत कड़वा होता है
यथार्थ में जीना कठिन होता है।
इस महानगरी में -
उसे पटरी से हटकर
'चौल' (1) में रहना होता है।
उसे फुटपाथ पे सोना होता है।

इसीलिये ज्यादातर लोग यहाँ
नींद में सोये रहते हैं।
ज्यादातर लोग यहाँ
सपनों में खोये रहते हैं।

(1) मुम्बई में कतार में बने डिबियानुमा घर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें