रविवार, 24 फ़रवरी 2008

नियति और नीयत

नियति में क्या बन्द हमारी
मालूम नहीं हमको कुछ भी ।
घबराहट है, डर लगता है ।
पर होता वही है -
जो नियति में है बन्द हमारी ।

नीयत का मालूम हमें है ।
अंदर चलती बात पता है ।
क्या लेना, क्या देना किसको
सब बातों की बात पता है ।

इन दोनों में अन्तर इतना -
नीयत अपनी शक्ती में है ।
नियति पर चलती उसकी है ।

नीयत को यदि साफ रखोगे
नियति में बरकत होगी ।
नीयत में यदि खोट रहेगा
नियति में भी खोट लगेगा ।

इसीलिये मैं कहता हूँ -
नीयत अपनी साफ रखो
सीधा सच्चा काम करो
उसका भी कुछ नाम कहो।
चिन्ता कैसी ? चाह नहीं हो ।
होना हो, हो जाये वही फिर
नियति में जो बन्द हमारी ।
नियति में जो बन्द हमारी ।

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