रविवार, 24 फ़रवरी 2008

आखिर क्यों?

बहुत खुश था मैं
कल उनसे मेरी मुलकात होनी थी।
बहुत ज्यादा खुश था मैं
कल उनसे मेरी बात होनी थी।
बहुत गर्म जोशी से मिला था
तहे दिल से स्वागत किया था उनका।

मैं खुश था
उनके चेहरे पर मुस्कराहट थी
बहुत प्रेम भावसे मिले थे मुझसे।
मैंने पूछा - कैसे हैं?
उन्होंने कहा - कैसे हो?
मैं खुश - उन्होंने पहचान लिया मुझे !
आखिर भूलते कैसे
सुबह शाम का साथ था
बहुत करीब का रिश्ता था हमारा।

मैंने बात शुरू की
जहाँ छोड़ी थी बरसों पहले।
उनके चेहरे का भाव बदल गया।
मैं पढ़ नहीं पया उसे -
वो भूल गये थे मुझे ?
न पहचानने की कोशिश ?
न जाने क्या ?

मैं सकते में था
रंग - रूप में परिवर्तन -
बीते दिनों के अनुपात में पूरा।
रंग - ढ़ंग में परिवर्तन -
बिना किसी अनुपात में पूरा।
आखिर क्यों?

मैं बरसों बाद भी वहीं खड़ा था
वो बदल गया था
आखिर क्यों ?

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