रेल चली है मेल चली है
सब को साथ में लेकर अपने
कितनी तेजी रफ्तार चली है
फटेहाल रहती थी पहले
टक्कर यहाँ हुयी थी इसकी
वहाँ गिरी थी धक्का खाकर
पैसे सारे खत्म हुऐ थे
घाटे का सौदा लगती थी।
बड़े डाक्टर ने बतलाया था
बुढ़ा गयी है अब ये बिलकुल
मोटी भी कितनी लगती है
काट छाँट कर छोटा करलो
वज़न गिरा कर आधा करलो।
कड़वी घुट्टी धरी सामने
बोला इसको झटपट पी लो
शायद ही यह बच पायेगी
वरना जल्दी मर जायेगी।
डाक्टर बड़ा काबिल था लेकिन
शहारों में पल कर आया था
नहीं ज्ञान था उसको बिलकुल
गरीब बेचारे कैसे रहते हैं
कितना रेलों पर निर्भर हैं।
रोटी कपड़ा तेल पानी सब कुछ
ये ही ले जाकर देती है उनको
नहीं रहेगी कल जब यह तो
वो क्या खायेगा, क्या पीयेगा
कैसे फिर वह रह पायेगा।
तभी परिवर्तन की लहर उठी
माता का दरबार लगा
मनमोहन ने कमर कसी
गरीब मसीहा को वो लाये
बोलो– देखो इसको सम्हालो
फिर से जीवन तुम डालो"।
लोगों ने देखा हँसकर बोला–
कितना अच्छा योग बना है
चाल को देखो समझो पहचानो
एक तीर से दो को मारो
ये डूबेगी इसको लेकर
खेल खत्म दोनों का होगा"।
ये डाक्टर था बड़ा अनूठा
उसने देख परख कर समझ लिया
नब्ज़ पकड़ पहचान लिया
बोला–
साथ चलेंगे साथ रहैंगे राष्ट्र प्रगति के पथ पर सब
रेल बढ़ेगी राष्ट्र उठेगा तब खुशहाल बनेंगे सब।"
मूल मंत्र फिर बदल दिया
बाजी को उसने पलट दिया।
बोला– जितना चाहे खर्च करो
बस दौड़ो भागो तेजी से हरदम
नयी जवानी आ जायेगी।
कीमत अपनी कम कर दो
गरीब को राहत दे दो
नेक दुआएं मिल जायेंगी
आमदनी भी बढ़ जायेगी।''
सब के सब सकते में थे
– क्या संभव है यह?
पर सब खुश भी थे।
नहीं पिलायी इसने घुट्टी
काट छाँट भी नहीं करी।
सो धीर धरी सबने मन में
और मिल जुलकर फिर काम किया
जैसा बोला इसने वो मान किया।
सब कुछ बदल गया तब
घटी कीमतें, मिलीं दुआएं, बढ़ा मुनाफा
लक्ष्मी जी ने वास किया।
दुनिया में सबसे अव्वल नम्बर से
सभी इम्तहानों को पास किया।
अब काया इसकी पलट गयी है
दुनियाँ भर से सब आते हैं
प्रोफेसर से सीख यही लेकर जाते हैं
– रेल मेल की भाषा है रेल मेल की बोली है
रेल मेल चलाती है रेल मेल बढ़ाती है
खुशहाली फैलाती लाती है।
मूल मंत्र है सीधा साधा-
कीमत अपनी कम कर लो
वजन उठाओ ज्यादा से ज्यादा
दौड़ो भागो तेजी से हरदम।
भला गरीबों का हो जिसमें
ऐसा ही कुछ काम करो
ऐसा ही बस काम करो।।
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