हर्ष कुमार की कविताएं
यह मेरी कविताओं का छोटा संग्रह है। अपने विचार जरूर व्यक्त करें मुझे प्रसन्नता होगी।
रविवार, 24 फ़रवरी 2008
फर्ज़ और क़र्ज़
क़लम का तक़ाज़ा है -
हक़ीकत बयाँ करूँ।
तेरा ये क़र्ज़ है -
दिलकश ज़ुबां कहूँ।
क़र्ज़ और फर्ज़ में तकरार हो,
तो ये हक़ अदा करूँ ।
बेशक, सर हो क़लम तो हो,
क़लम को न क़लम करूँ ।
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