कचरे के ढ़ेर पर -
प्लास्टिक की थैलियाँ
भिनभिनाती मक्खियाँ
पास खड़ा कुत्ता
कचरे को कुरेदती
उसमें खाना ढूँढती
लाचार आखें
पास ही
लुका - छिपी खेलते बच्चे।
यह सब देखकर मैं समझ गया
मैं जंगल के बाहर आ गया हूँ
किसी शहर के पास हूँ।
अब जंगली लोगों का
कोई भय नहीं
मैं अब सभ्य लोगों के बीच हूँ।
मैं समझ गया-
मैं सभ्य लोगों के बीच हूँ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें