शनिवार, 7 फ़रवरी 2009

पैसे का मोल

- लोग मुफ्त की चीज का
मान नहीं करते।'
ये बात वो लोग करते हैं
जो मुफ्त की चीज का
मोल नहीं जानते।

क्या आप नहीं मानते -
दुनियाँ में अच्छा है
जो कुछ भी अच्छा है
सब बस मुफ्त में है?

आपने कभी देखा है?
हवा को कहते -
'पहले पैसे दो, फिर साँस लो।'
इन नदी और झरनों को
बोलते सुना है -
'पानी मत पियो
पहले पैसे दो।'
आपने देखा है -
आकाश को पक्षियों से पैसे माँगते।
पेड़ को माँगते कीमत फल की
फूलों को सुगन्ध की ?

पैसा तो मात्र साधन है
इन्सान से इन्सान के व्यापार का।
व्यवहार का नहीं।
इसे इन्सान ने बनाया है
इसने इन्सान को नहीं।

बात छोटी सी है पर
यकीन नहीं होता ?
बचपन से आँखों पर
पट्टी जो है पैसे की।

पैसा नहीं आता बीच में
जब संबन्ध बनता है
एक आत्मा का दूसरी आत्मा से।
न आता है
आत्मा परमात्मा के बीच में।
वो!
हर बालक के जन्म पर
दिखा देता है - 'देखो यह खाली हाथ है'।
हर मृत के साथ दिखा देता है-
'यह भी खाली हाथ है'।
और साफ-साफ जता देता
पैसा तो बस हाथ का मैल है।
पैसा बस हाथ का मैल है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें