शनिवार, 7 फ़रवरी 2009

सोना खरा होता है

तुम्हें देखकर - लगता है मुझे
वक्त बदला ही नहीं
थम गया है वहीं - जहाँ पर था कभी।

वही काले घने केश - वैसे ही हैं जैसे थे कभी
कुछ और निखार है
बादल में सुनहरी किरणें हों जैसे।

वही निश्छल, मधुर मुस्कान -चारों ओर खुशहाली फैलाती।
अपने अन्दर समाये हुऐ है
वही मोतियों की लड़ी - वैसी ही जैसी थी कभी।

आँख, भौं, पलक और चेहरे की दमक नहीं बदली
न बदली है होठ और गालों की लाली
समय से अछूते रह गये हैं सभी
जैसे समय ही थम गया हो वहीं - जहाँ पर था कभी।

बदला है तो बस
आँख के रास्ते दिखने वाला
मन और दिमाग का भाग
ये मजबूत हो गया है, पूरी तरह पक कर
जैसे मिट्रटी का बर्तन।
इसने अपना आकार बनाया है -
परिपक्व, अनोखा सबसे अलग।
अपना व्यक्तित्व गढ़ लिया है - अनूठा बेजोड़।

यह बता रहा है -
इसने अपने को तैयार कर लिया है
अडिग रहने को, तूफान कैसा भी हो

यह जान गया है -
तूफान आयेंगे - जायेंगे
जो बह जायेंगे, टिक नहीं पायेंगे।
जो रह जायेंगे - अडिग तपस्वी से
टिक जायेंगे अपना स्थान बना कर
फिर दूसरे तूफान का सामना करने को।

यह सब देखकर कितना अच्छा लगता है मुझे
लगता है किसी ने सच ही कहा है-
सोना तपता है, तो और खरा होता है।।

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