कैसे होते हैं - माँ बाप
जो लाद देते हैं बोझा
अपने बच्चों पर,
अपनी कामनाओं का
जो पूरी न हो सकीं
और मर गयीं एक जवान मौत।
वे चाहते हैं कि
बच्चे जियें वह जिन्दगी
जो वो जीना चाहते थे
पर उन्हें न मिल सकी ।
इन मृत इच्छाओं के तले
बच्चे दब जाते हैं और
जीते हैं, लाश ढोते हुए।
उसके सड़न की बदबू
उनके नाक और दिमाग में भर जाती है
मार देती है
उनकी हर इच्छा
हर सपना नष्ट हो जाता है।
वो जीते हैं दिशाहीन नाव से
जो ढूँढती है किनारा
फिर अपने बच्चों पर
अपने मृत सपने लाद कर।
क्या यही देंगे?
विरासत में अपने बच्चों को -
ऐसी जिंदगी,
इच्छाओं को मार कर जीने का ढंग?
अच्छा न हो -
कि तोड़ दें हम यह कुचक्र?
और स्वतंत्र जीने दें अपने बच्चों को।
उनके अपने सपनों के साथ
उनकी अपनी दुनिया में।
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