शनिवार, 7 फ़रवरी 2009

दंगे

जब - जब दंगे होते हैं
हम नंगे होते हैं।
जब - जब दंगे होते हैं
हमारे ऊपर से
'समाज' की चादर
खींच ली जाती है।
हमारे 'सभ्यता' के कपड़े
नोच लिये जाते हैं।
हम नंगे हो जाते हैं

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जब - जब दंगे होते हैं
हम अपनी 'समाज' की चादर
फाड़ देते हैं।
अपने 'सभ्यता' के कपड़े
नोच कर उतार फेंकते हैं
नंगे हो जाते हैं

जब - जब दंगे होते हैं
हम नंगे होते हैं।

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