जब - जब दंगे होते हैं
हम नंगे होते हैं।
जब - जब दंगे होते हैं
हमारे ऊपर से
'समाज' की चादर
खींच ली जाती है।
हमारे 'सभ्यता' के कपड़े
नोच लिये जाते हैं।
हम नंगे हो जाते हैं
-------
जब - जब दंगे होते हैं
हम अपनी 'समाज' की चादर
फाड़ देते हैं।
अपने 'सभ्यता' के कपड़े
नोच कर उतार फेंकते हैं
नंगे हो जाते हैं
जब - जब दंगे होते हैं
हम नंगे होते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें