सोमवार, 30 दिसंबर 2024

फिर पूछ लिया तुमने क्या हो?

 फिर पूछ लिया तुमने 

क्या हो

तुम्हीं कहो -

कैसे कह पाऊँगा क्या हो


गर्म ख़ून सा जोश तुम्हारा

पर्वत पर बहती धारा सी

चंचलता की मूरत हो तुम

मंद पवन की शीतलता हो

बच्चों सी भोली हो तुम

गुलाब की कोमलता हो

बुद्धि गार्गी की है तुम में

कड़क चमकती बिजली हो

चपला भी तुमको ही कहते हैं

जीवन का मतलब हो तुम

आराधना और तपस्या की थी

उन सब का ही फल हो तुम

सब बीमारी की एक दवा हो

वो राम बाण भी तुम ही हो 


और बताओ क्या-क्या कह दूं 

चमक आंख में तुमसे ही है 

हर पल आती मेरी साँसें हो तुम 

मेरे दिल की धड़कन हो तुम

जो कुछ भी है जग में मेरा

जगमग-जगमग तुमसे ही है


तुम्हीं बताओ क्या मैं बोलूँ

मुझको देखो ख़ुश हूँ कितना

जगमग-जगमग तुमसे ही हूँ 

जगमग-जगमग तुमसे ही हूँ 

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