तुम पूछते हो मुझसे कि तुम क्या हो
मेरी उम्र भर की दुआओं का असर हो
वो ज़िन्दगी ही असल ज़िन्दगी होगी
जो तेरी ज़ुल्फ़ों की छाँव में बसर हो
प्यार मुहब्बत हो, मिल-बांट कर रहें
डूंड रहा हूँ मैं कोई ऐसा भी शहर हो
वक़्त कट जाये और पता भी न चले
हमसफ़र कोई ऐसा हो तो सफर हो
तुम तो कायनात का नायाब नगीना हो
अब तुम्हीं कहो कैसे मुझको सबर हो
उस ज़िन्दगी को ज़िन्दगी कैसे कहें
जो तेरी ज़ुल्फ़ की छाँव में न बसर हो
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