शनिवार, 7 दिसंबर 2024

तुम क्या हो

तुम पूछते हो मुझसे कि तुम क्या हो

मेरी उम्र भर की दुआओं का असर हो


वो ज़िन्दगी ही असल ज़िन्दगी होगी 

जो तेरी ज़ुल्फ़ों की छाँव में बसर हो


प्यार मुहब्बत हो, मिल-बांट कर रहें 

डूंड रहा हूँ मैं कोई ऐसा भी शहर हो


वक़्त कट जाये और पता भी न चले

हमसफ़र कोई ऐसा हो तो सफर हो


तुम तो कायनात का नायाब नगीना हो

अब तुम्हीं कहो कैसे मुझको सबर हो


उस ज़िन्दगी को ज़िन्दगी कैसे कहें

जो तेरी ज़ुल्फ़ की छाँव में न बसर हो

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