लुट गया है सब कुछ, बस बच गया है तू
तू है तो कैसे कहें कि लुट गया है सब कुछ।
यह मेरी कविताओं का छोटा संग्रह है। अपने विचार जरूर व्यक्त करें मुझे प्रसन्नता होगी।
कली एक और
खिल गई है
बाग में मेरे
छोटी है, सुंदर है
रोती है हँसती है,
सोती है जगती है
दूध पीती है सो जाती है
हरदम मस्त रहती है
अभी छोटी है
पर अपनी पहचान है
इसकी अपनी हस्ती है
अपना व्यक्तित्व है
अपनी समझ है
नासमझ मत समझना
ठीक से समझो इसे
देखो चतुर है कितनी
किलकारी से, चीख से
रो कर, हंस कर
अपनी हर बात
बता देती है अपनी माँ को
हर बार, एक दम साफ़
फिर करा लेती है
सब कुछ जो भी चाहती है
दिन रात जब चाहती है
अपनी माँ से कराती है
बच्ची छोटी है
अच्छी है प्यारी है
सबकी दुलारी है
मेरे बाग की नयी कली
कितनी प्यारी है
मेरे बाग की नयी कली
रिश्ते रिसते हैं तो घर भी बरबाद करते हैं।
वरना वो पूरे कुनबे को भी आबाद करते हैं
रिश्ते रिसते हैं तो घर बरबाद करते हैं।
वरना पूरे कुनबे को वो आबाद करते हैं
तुम पूछते हो मुझसे कि तुम क्या हो
मेरी उम्र भर की दुआओं का असर हो
वो ज़िन्दगी ही असल ज़िन्दगी होगी
जो तेरी ज़ुल्फ़ों की छाँव में बसर हो
प्यार मुहब्बत हो, मिल-बांट कर रहें
डूंड रहा हूँ मैं कोई ऐसा भी शहर हो
वक़्त कट जाये और पता भी न चले
हमसफ़र कोई ऐसा हो तो सफर हो
तुम तो कायनात का नायाब नगीना हो
अब तुम्हीं कहो कैसे मुझको सबर हो
उस ज़िन्दगी को ज़िन्दगी कैसे कहें
जो तेरी ज़ुल्फ़ की छाँव में न बसर हो