शनिवार, 17 अगस्त 2024

क्यों मौन हो तुम ?

आज तुम मौन हो ?

तुम्हारी चुप्पी का शोर 

कान के पर्दे फाड़ रहा है 

बहुत परेशान कर रहा है 

सभी सोच रहे हैं 

क्या हो गया तुम्हें ?

कहाँ छुपे हो तुम ?

आज क्यों मौन हो तुम ?


घटना तो बहुत दूर की बात है 

ज़रा अंदेशा हो, शुरु होते थे 

ज़ोर से चीखते चिल्लाते थे 

आसमान सिर कर देते थे 

और आज चुप हो तुम?


कुरु सभा की सीमा से परे 

इतने घृणित कृत्य पर 

इतने निन्दनीय कृत्य पर

इस भयंकर काण्ड पर

तुम चुप हो !?

आख़िर क्यों चुप हो?


हाँ, समझा

काण्ड तुम्हारे अपनों का है

तुम्हें डर है - फाँसी होगी?

जनता नौंच कर खा जायेगी

नाश हो जायेगा उनका


हाँ नाश तो होगा उनका

अवश्य ही नाश होगा उनका

साथ ही नाश होगा 

हर चुप रहने वाले का

और होना भी चाहिये

कुरु सभा की तरह

गुरु, पितामह, भई सबका


यहाँ मोमबत्ती नहीं जलाते

पूरी लंका ही फूंक देते हैं 

आततायी का वध होता है

अर्जुन संहार कर देता सबका

स्वयं राम कर देते है 

समूल समस्या समाधान


तुम मौन न रहो

छुपो मत, बाहर आओ

चुप्पी तोड़ो ज़ोर से चीखो

डाक्टर की आत्मा पुकारती है

धिक्कारती है तुम्हें 

बाहर निकलो चुप्पी तोड़ो

न्याय दिलाओ, न्याय दिलाओ

ज़ोर से चीखो और चिल्लाओ

न्याय दिलाओ, न्याय दिलाओ