बुधवार, 13 मार्च 2019

मेरी तो मंज़िल हो तुम

बिन बोले ही मुझसे तो, बात हमेशा करते हो तुम
साथ नहीं हो मेरे फिर भी, पास हमेशा रहते हो तुम

खोया-पाया क्या कुछ मैंने, क्या मुझको फिर मिला नहीं
हिसाब लगाने बैठूं जब मैं, तो याद बहुत आते हो तुम

सुबह हुई फिर शाम ढली, रात गयी फिर सुबह हुई
कितनी प्यारी थीं वो बातें, कहते कब थकते थे तुम

खत में बस वादा था, तारीख नहीं थी उस पर कोई
हामी तुमने भरी नहीं,  और मना कहां करते हो तुम

मैं बैठा हूं आज यहां, और तुम हो कितने दूर वहां
हर्ष नहीं होता है मुझको, दुःखी भाव रहते हो तुम

रंजिश है तो बोलो मुझको, या फिर मिलने आ जाओ
क्या गुज़रे है दिल पर मेरे,  समझ नहीं रहे हो तुम

मैं भी अब ये जान गया हूं, पता तुम्हें है इसका पूरा
सदियों से मैं ढ़ूंड रहा हूं, मेरी वो मंज़िल हो तुम 

1 टिप्पणी:

manisha kesan ने कहा…

भावुकता से परिपूर्ण बहुत सुन्दर लिखा है आपने यही लिखते रहिये भावुकता से परिपूर्ण बहुत सुन्दर लिखा है आपने यही लिखते रहिये

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