शनिवार, 13 मई 2017

लाल किला

लाल किला, लाल है क्यूँ
जानते हो तुम?

जब बना था
लाखों ने खून पसीना एक किया था
इसकी नींव को भरा था
बन गया यह
एक अजूबा अपनी तरह का
धरती पर स्वर्ग यही था

इसकी अपनी शान थी
बादशाहत की आन थी
आन पर मर मिटे कितने शहीद
लहू बहा कितनों का
कोई हिसाब नहीं

फिर लुट गयी आन
शान गुम हो गयी
नाहक गरीबों की जान गयी
नादिर ने मारा सभी को
जो मिला इसके सामने
जब तक कोई जिन्दा बचा।
फिर लाश को पीटा
अब्दाली ने कई बार लूटा
खून से रंग दिया पूरा।

फिर आये लाल मुँहे
अपनी करतूतों पर
शहजादों को मारा
प्यास नहीं बुझी
फिर खून की नदी बही।

फिर आज़ादी की लड़ाई
बन्दूक तोप तलवारों के खिलाफ
बिना बन्दूक तोप तलवारों की लड़ाई।
बहुत शर्मनाक हरकतें हुईं
पर निहत्थों के आगे एक न चली
सत्ता की कमर चरमराई और टूट गयी
देश आज़ाद हो गया।

फिर देखी इसने लड़ाई
सरहद पर हुई कई बार की लड़ाई
इसकी शान को आँच न आये
इसकी आन बनी रहे
यही सोचा होगा उन सभी ने
जो वीरगति के काम आये।

इसने देखा है सब
खून के हर कतरे का हिसाब रखा है
लोगों को याद रहे
सब कुछ याद रहे
कोई भूलने न पाये
इसलिये अपना रंग लाल रखा है।

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