हे कृष्ण !
वो चीत्कार सुनी थी
तुमने?
कहां थे तुम?
द्रोपदी अनाथ हो गयी
दुशासन जीत गया
दुर्योधन की आत्मा
प्रसन्न हो गयी
रावण बहुत पीछे रहा
गया
अब तो आ जाओ,
अपना सुदर्शन चक्र
लिये न्याय करो, आतताई को दंड दो
या भेज दो भीम और अर्जुन को
दुशासन की छाती फाड देंगे
उसकी भुजा उखाड़ फेंकेंगे
कर्ण की जीभ काट देंगे
दुर्योधन की जांघ तोड़ देंगे
भीष्म और द्रोण?
वो तो मौन थे, सदा की तरह
कुरु सभा?
वो तो नपुंसक थी
मूक दर्शक थी
हमेशा ही ऐसी रही
वैसी ही रहेगी
ये सभी मौत के हकदार हैं
कौन देगा इन्हें?
कृष्ण! कहां हो तुम?
कब आओगे?
2 टिप्पणियां:
जी हर युग में और देश में दौपदी केवल रोती है। क्या यही है उसकी नियति हैं ?क्यों और कब बदलेगी ये व्यथा, कौन जाने?
हां एक अच्छी कविता के लिए धन्यवाद।
Today we can understand the symbolism in Mahabharata. The whole body of excellent, praiseworthy persons are silent spectators to the rampage by a very small number of villains. Very well said, Harsha
एक टिप्पणी भेजें