बुधवार, 17 मई 2017

कलियुग की गान्धारी

कलियुग में 
गान्धारी को महाभारत का
आँखों देखा हाल
सुनाने का कार्य
संजय और उसके साथियों ने लिया।

परन्तु यह कार्य
उन्होंने सच्चाई और कुशलता से नहीं किया,
या फिर 
गॉन्धारी ने 
अपने आँखों की पट्टी से
अपने कानों को भी बन्द कर लिया था।

वह अपने पुत्र को,
लौह पुरुष बनाने के लिये
नग्न हो , अपने सम्मुख आने को न कह सकी।

वह मिट्टी का पुतला
बेचारा बाढ़ में  बह गया।

शनिवार, 13 मई 2017

लाल किला

लाल किला, लाल है क्यूँ
जानते हो तुम?

जब बना था
लाखों ने खून पसीना एक किया था
इसकी नींव को भरा था
बन गया यह
एक अजूबा अपनी तरह का
धरती पर स्वर्ग यही था

इसकी अपनी शान थी
बादशाहत की आन थी
आन पर मर मिटे कितने शहीद
लहू बहा कितनों का
कोई हिसाब नहीं

फिर लुट गयी आन
शान गुम हो गयी
नाहक गरीबों की जान गयी
नादिर ने मारा सभी को
जो मिला इसके सामने
जब तक कोई जिन्दा बचा।
फिर लाश को पीटा
अब्दाली ने कई बार लूटा
खून से रंग दिया पूरा।

फिर आये लाल मुँहे
अपनी करतूतों पर
शहजादों को मारा
प्यास नहीं बुझी
फिर खून की नदी बही।

फिर आज़ादी की लड़ाई
बन्दूक तोप तलवारों के खिलाफ
बिना बन्दूक तोप तलवारों की लड़ाई।
बहुत शर्मनाक हरकतें हुईं
पर निहत्थों के आगे एक न चली
सत्ता की कमर चरमराई और टूट गयी
देश आज़ाद हो गया।

फिर देखी इसने लड़ाई
सरहद पर हुई कई बार की लड़ाई
इसकी शान को आँच न आये
इसकी आन बनी रहे
यही सोचा होगा उन सभी ने
जो वीरगति के काम आये।

इसने देखा है सब
खून के हर कतरे का हिसाब रखा है
लोगों को याद रहे
सब कुछ याद रहे
कोई भूलने न पाये
इसलिये अपना रंग लाल रखा है।

यह नहीं होगी, तो कल भोर नहीं होगी


देखो तुम ये छोटी बच्ची, है कितनी अच्छी
प्यारी-प्यारी बातें इसकी, हैं कितनी अच्छी ।
प्यार करूं कितना भी, कम ही कम लगता है
लाड़ लड़ाऊं जितना, पर मन नहीं भरता है ।

मैं सोचता रहता हूं काम इसे कितने हैं
आने वाला कल इस पर ही निर्भर है ।
नई-नई पीढ़ी को दुनिया में ये ही लाएगी
हम इसको जो देंगे दस गुना उन्हें यह देगी।

सीख उन्हें ये देगी, ध्यान रखेगी, पालेगी-पोसेगी
तकलीफ अगर कुछ होगी, तो रात-रात जागेगी ।
इसके दम से ही, हम दम भरते हैं दुनिया में
इसके दम से ही, तुम दम भरते हो दुनिया में ।

पर दुर्भाग्य हमारा देखो, अकल के कुछ अंधे हैं
दुनिया में आने से पहले ही, जो मार इसे देते हैं।
वो भी क्या कम हैं, जो तंग इसे करते हैं
दहेज की वेदी पर, जो बलि इसकी देते हैं ।

अगर यह नहीं होगी, तो कल भोर नहीं होगी
यह संसार नहीं होगा, यह सृष्टि नहीं होगी ।
हम भी नहीं होंगे, तुम भी नहीं होगे
विश्वास मुझे है तब वो भी नहीं होगा ।

जिसके दम से हम दम लेते हैं दुनिया में ।
जिसके दम से सब दम लेते हैं दुनिया में ।
तब वो भी नहीं होगा-तब वो भी नहीं होगा।

शनिवार, 29 अप्रैल 2017

माँ, चली गयी आज



माँ, चली गयी आज
बीमार थी कई दिन से
अस्पताल में जी घबराता था उसका
मगर घर पर बहुत ख़ुश रहती थी

क्या करते इन्फैक्शन था बीमार थी
बिना अस्पताल राहत न मिलती
ले जाना पड़ा, भर्ती कराना पड़ा
कभी कमरे में होती कभी आईसीयू
बस इसमें सिमट कर रह गयी थी

फिर ऊब गया मन नाराज़ हो गयी
इलाज पूरा हुआ, अब ध्यान रखते हैं
सुबह शाम दवा से मेरा पेट भरते हैं

रूठ जाती, बिलकुल बच्चों सी रूठ जाती
दाँत भींच लेती थी पानी भी नहीं पीती
बहुत बहलाया, डाक्टर ने भी समझाया
कभी मानती, कभी ज़िद पर डटी रहती

दिमाग़ एकदम ठीक, सब पता था उसे
बस शरीर जबाब दे रहा था उसका
एक दिन डाक्टर को रोक लिया उसने
उसने पूछ, कि बेचारा बस चुप रह गया

-इन्फैक्शन तो ठीक हो गया है अब
रह गया है तो बस केवल एक बुढ़ापा
बेइलाज है, क्या इलाज है उसका?
यहाँ देखभाल है, घर पर भी हो जायेगी
बच्चों के साथ रहूँगी, दिल बहल जाएगा
जब बुलाओगे चैक-अप यहाँ कराऊंगी

छुट्टी दें, यहाँ नहीं रहना, घर जाना है मुझे
यहाँ से नहीं, घर से ही जाना है मुझे

फिर घर आयी और घर से चली गयी
जैसा वो चाहती थी, वैसे ही कर गयी

माँ बीमार थी कई दिन से
आज चली गयी
हमेशा-हमेशा के लिये चली गयी

गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

चिड़िया को मत बन्द करो तुम

आओ बच्चों तम्हें सुनाऊँ।
एक कहानी बहुत पुरानी ।।
नन्ही सी एक चिड़िया रानी।
मेरे  घर  में  आती  थी ।।

कूक-कूक कर मुझे बुलाती।
किलकारी से घर भर जाती ।।
मीठे  सुर  में  गाना  गाती ।
हम सब का वो दिल बहलाती ।।

जब भी उसका मन करता था।
बहुत दूर वह उड़ जाती थी।।
भूख लगी तो घर को आती ।
वरना वो बाहर रह जाती ।।

एक दिवस को नटखट चुन्नू।
जाल बिछा कर बैठ गया।।
चिड़िया को उसने पकड़ लिया।
पिंजड़े में फिर जकड़ दिया।।

चिड़िया अब मुश्किल में थी।
चुन्नू  के  कब्जे  में  थी ।।
गाना उसने बन्द किया।
अनशन पानी ठान लिया ।।

चुन्नू ने उसको ललचाया।
लड्डू पेड़े  खाने को लाया ।।
चिड़िया बिलकुल बदल गयी थी ।
सूरत  उसकी  उतर  गयी  थी ।।

चिड़िया थी मन की रानी।
आँखों में था उसके पानी।।
मैंने फिर पिंजड़ा खोला।
चिड़िया को बाहर छोड़ा।।

फुर से चिड़िया निकल गयी।
दूर  डाल  पर  बैठ  गयी।।
पहले  उड़  ऊपर को  जाती।
फिर गोता मार नीचे को आती।।

मीठे सुर में गाना गाती।
मकारीना नाच दिखाती।।
कितनी खुश चिड़िया रहती।
जो मन  आया  वो  करती।।

एक बात  की  सीख करो तुम।
चिडि़या को मत बन्द करो तुम।।
जितनी  खुश  चिड़िया होगी।
उतने  खुश  तुम  भी  होगे।।

चिड़िया को मत बन्द करो तुम।
चिड़िया को मत बन्द करो तुम।

दिमाग घूम जाता है मेरा

दिमाग घूम जाता है मेरा
जब कभी तुम पास होते हो मेरे

मैं भूल जाता हूं
कौन हूं मैं
क्या करता हूं
क्यों करता हूं

खो जाता हूं
नयी दुनियां में
पूर्णत: तनाव मुक्त
न कोई चिंता न परेशानी
न कोई खतरा

फिर जुट जाता हूं
दूनी लगन चाव और मेहनत से
अपने काम में पूरी तरह मशकूल

भूल जाता हूं –
तुम मेरे पास हो

बस दिमाग घूम जाता है मेरा
जब कभी तुम पास होते हो मेरे

बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

प्रेम द्विवेदी सच बोला था!

प्रेम द्विवेदी बोला था
- सत्य वचन हो, कर्तव्यनिष्ठ हो
परोपकार में ध्यान लगाओ
कथनी-करनी एक बना लो
जो करना हो वो बोलो
जो बोलो वो कर डालो”

मंत्र हमेशा साथ रहा यह
अपनाया इसको, जीवन में ढ़ाला।
कभी-कभी मैं थक जाता हूँ
निराश अकेला सोचा करता हूँ
- वो सच बोला था ?”

देख रहा हूँ वो भेड़िये
जो छुपे भेड़ की खाल ओढ़कर
यहाँ-वहाँ पर खड़े हुये हैं।
वो देखो वे श्वान वहाँ पर
तैयार ताक में खड़ा हुआ है
झपट पकड़ लेगा वो बिल्ली
जो बैठी है घात लगाकर
उस चूहे को ताक रही है।

वो मदमस्त चला आता है हाथी
चूर नशे में तनकर कितना
कुचल-मसलकर रख देगा
कहीं कोई जो रस्ता रोकेगा।

वो देखो, वो गिद्ध वहाँ बैठे कितने हैं
मरे गिरों को भी नोचेंगे।
वो दूर सिंह चला आता है निर्भय
जब आता है उसके मन में
मार गिरा देता है, खा जाता है
नहीं किसी का डर है उसको

बेताज बादशाह बन बैठा है
कौन उसे गद्दी से खींचेगा?
कौन उसे रोके-टोकेगा?
कौन नकेल लगा पायेगा?

वो घोड़ा दौड़ रहा हिरनों के पीछे
ले मालिक को ऊपर अपने
खुद मांस-मछली कभी नहीं ये खाता
पर मालिक से है उनको मरवाता

मालिक उसका है अजब निराला
खेल-खेल में मारेगा
चमड़ी में भूसा भरवा देगा।
नहीं किसी का डर है उसको
नहीं किसी से प्रेम है उसको

मैं जब देखा करता हूँ यह सब
सोचा करता हूँ -

प्रेम द्विवेदी सच बोला था”

तुमको क्या लगता है -

वो सच बोला था ?”