रविवार, 18 दिसंबर 2022

भगवान का साथ


आज अचानक
मोहित के मुँह से निकल गया
    - वो भगवान को पहचानता है
    उनसे मिला है, बात की है।
 
मैं हैरान था।
पूछा - कहाँ देखा?
कैसे मिले? कैसे पहचाना?'
 
बोला - जब कभी घूमकर देखता हूँ
पाता हूँ अपने दो पदचिन्ह
साथ ही दो और पद चिन्ह।
वो भगवान के होते हैं
जो हमारे साथ चलता है।
 
एक बार बहुत परेशानियों में उलझा था
जब मुड़कर देखा
मेरे पीछे चार नहीं दो पदचिन्ह थे
 
मैं घबराया
सोचा भगवान ने साथ क्यों छोड़ा?
क्या भूल हुयी मुझसे?
मैंने ऐसा क्या किया
जो उन्हें ठीक नहीं लगा?
 
ध्यान कर याद किया भगवान को
उन्हें बुलाया और यही प्रश्न किया।
 
भगवन हँसकर बोले-
मैं दुनिया में तुझे लाया हूँ
तेरा साथ कैसे छोड़ूँगा
मैं हमेशा तेरे साथ चलता हूँ।
मैं कभी पीछे चलता हूँ
कहीं तुम लड़खड़ाओ तो सम्हालूँ
कभी आगे चलता हूँ रास्ता दिखाता।
क्या तुम नहीं देखते - चार पदचिन्ह'
 
मैने कहा - भगवन!
जब देखता हूँ चार चिन्ह
खुश होता हूँ तुम साथ हो
पर आज जब देखा बस दो चिन्ह
घबराया, सोचा तुम नाराज़ हो
मुझे मंझधार में छोड़ गये।
क्या करूँ? कहाँ जाऊँ?'
 
भगवान बोले - 
आजकल तुम परेशानी में हो
संकट से घिरे हो,
तुम घबरा गये हो
इसलिये मैं अकेला चलता हूँ
तुम मेरी गोदी में रहते हो।
पदचिन्ह चार नहीं दो बनते हैं
तुम मेरी गोदी में रहते हो।

1 टिप्पणी:

manisha kesan ने कहा…

आपकी लिखी हर कविता में कोई न कोई मूल रूप छिपा होता है जो की हमारे जीवन में महत्वपूर्ण होता है आप हमेशा ऐसे ही लिखते रहिये आपकी लिखी हर कविता में कोई न कोई मूल रूप छिपा होता है जो की हमारे जीवन में महत्वपूर्ण होता है आप हमेशा ऐसे ही लिखते रहिये

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