रविवार, 18 दिसंबर 2022

दिल्ली – तब और अब

दिल्ली सुन्दर थी
कितनी मनमोहक थी
सब का दिल हर लेती थी
दिल-ली, दिल्ली कहलाती थी


सुन्दर घना जंगल होता था
वन्य जन्तुओं से भरा होता था
हवा साफ सुन्दर होती थी
निर्मल जल की धारा बहती थी
जमी नहीं रहती थी
जम-ना, यमुना कहलाती थी
इन्द्रलोक के टक्कर की थी
इन्द्रप्रस्थ कहलाती थी
धरती पर कोई स्वर्ग बना था
यहीं यहीं यहीं बना था।


न बचा कोई कट गये जंगल सभी
फिर जीव-जन्तुओं की बारी आयी
वो भी अब तो नहीं रहे
दूषित हवा हुई है कितनी
गन्दी कितनी सड़कें रहतीं
नाली में अटकी कीचड़ रहती

धुँआ गन्दगी फैली रहती
सड़कों पर गाड़ी अटकी रहती
जल स्तर नीचे खिसकता रहता
यमुना का पानी गन्दा अब रहता

यह यम की बहना है
पता सभी को इसका रहता
इन्द्र लोक अब नहीं यहाँ पर
कूड़ा-कचरा फैला है

अब देख इसे सब कहते है
क्यों धरती को हम मृ्त्युलोक कहते हैं।


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शाहजहां ने दीवाने खास में लिखवाया था
गर फिरदौस बर-रू-ए ज़मीं अस्तु ।
अमी अस्तु, अमी अस्तु, अमी अस्तु।।

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