सर फिर गया था हमारा
गलती की थी हमने
बहुत बड़ी गलती
जान बूझ कर की थी
निकल पड़े थे नंगे हाथ
बढ़ती आग बुझाने
अनजान नहीं थे हम
लड़ाई आर – पार की थी
जानते थे एक ही बचेगा
बाजी जीत लेंगे या तबाह होंगे
शायद जीत कर भी तबाह होंगे
फिर भी कूद पड़े थे
अनजान नहीं थे हम
किसी तगमे का लालच नहीं था
किसी खिताब की चाह नहीं थी
कुछ कर दिखाना नहीं चाहते थे
बस फिजूल का शौक था
हम पूरे होश में थे
पर न जाने क्यों
अजब, शराबी सा नशा था
सबकी सलाह ठुकरादी
किसी की एक न चली
हम न माने
किसी तरह न माने
बस कूद पड़े
जानते न थे
यह अजब खेल है
हारेंगे तो सब मिलकर मारेंगे
जीतेंगे तो घेर कर मारेंगे
बस मौत लिखी है
सबके नाम लिखी है
कोई हट के मरता है
कोई सट के मरता है
कोई खा कर मरता है
कोई भूखा मरता है
बस मरते हैं सभी
जरूर मरते हैं सभी
अजीब खेल है
यहां हारने वाले को
चील कौवे भी नहीं छोड़ते
जीतने वाले की बलि देते हैं
न जाने क्यों
फिर भी बहुत सरफिरे हैं
कूद जाते हैं
न जाने क्यों?
2 टिप्पणियां:
अजीब खेल है
यहां हारने वाले को
चील कौवे भी नहीं छोड़ते
जीतने वाले की बलि देते हैं
न जाने क्यों
javardast ahsas, badhai
Perfect.... i could feel it
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