जिद की है।
कहा है - कि मैं एक कविता कहूँ।
तेरी बोली ही कविता है - अलंकृत सत्य सी।
तेरी बोली संगीत है - सात सुरों का।
एक चित्र है - सतरंगी इन्द्र धनुष सा।
एक विचार है - संत स्वभाव का।
एक कर्म है - अर्जुन से कर्मवीर का।
एक धर्म है - युधिष्ठिर से धर्मवीर का।
तेरी बोली, रस की गोली है।
शान्त करती है मन को,
और बन जाती है
मेरी नयी कविता।
कितनी अच्छी है, प्यारी है,
तेरी बोली।
मेरी बेटी की बोली।।
3 टिप्पणियां:
Dear Harsh,,
Remarkable!! A completely unknown facet of yours, at least for me!
Bravo. Very nice reading. Can you also write rhyming poetry - I am more partial towards that?
I am looking for a Kaka Hathrasi poem, the last few lines of which went:
"Toh 60 varsh ke hue pitaji,
Aur vyarth hai jeena unka,
Jeebh hamari laplapaa rahi,
Ek laakh ka beema unka.
Toh Hey Prabhu maaro aisa ghissa,
Jald khatam ho jaye kissa,
Jitna dhan milega usmey,
10 per cent tumhara hissa!"
Can you help me locate the first few lines of this great poem? Maybe you have the time on your hands, now that you are on leave!
Love and best wishes,
Rakesh MISRA,
rakesh_misra@hotmail.com
सुंदर रचना ----बहुत अच्छा लगा पढ़ कर।
:) wow
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