शनिवार, 17 जनवरी 2009

चित्रा

नन्हीं सी जान बहुत छोटी थी
छोटे-छोटे हाथ-पैर, गोल चेहरा
बड़ी-बड़ी काली आँखें
कभी हाथ पर खड़ा करता
कभी काँधे पर उठाता उसको

छुट्टियों में जब घर जाता
दौड़कर चली आती थी मेरे पास
जब समय मिलता मेरे साथ ही रहती थी
दिनभर बातें या बस चुपचाप मेरे साथ रहना
यही एक काम था उसका

कहानियों की किताबें इकट्ठा करना
ला लाकर मुझे देना
सबसे जरूरी काम था उसका
वही बताती थी
मुझे सारी खबर - पूरे मोहल्ले की
– क्या हुआ?
कौन कहाँ गया? कौन कहाँ से आया?
सब का सब - पूरा ब्योरा।

जब सोचता हूँ
बीते कल के बारे में
सब कुछ एक पल में दौड़ जाता है फिर से
जैसे समय थम गया हो
और साफ उभर आता है
मेरे दिमाग में हर चित्र
उस समय का और ‘चित्रा’ का भी
हाँ चित्रा ही तो नाम है
उस नन्हीं सी जान का
प्यारी सी बहन का।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें