हे कृष्ण !
वो चीत्कार सुनी थी
तुमने?
कहां थे तुम?
द्रोपदी अनाथ हो गयी
दुशासन जीत गया
दुर्योधन की आत्मा
प्रसन्न हो गयी
रावण बहुत पीछे रहा
गया
अब तो आ जाओ,
अपना सुदर्शन चक्र
लिये न्याय करो, आतताई को दंड दो
या भेज दो भीम और अर्जुन को
दुशासन की छाती फाड देंगे
उसकी भुजा उखाड़ फेंकेंगे
कर्ण की जीभ काट देंगे
दुर्योधन की जांघ तोड़ देंगे
भीष्म और द्रोण?
वो तो मौन थे, सदा की तरह
कुरु सभा?
वो तो नपुंसक थी
मूक दर्शक थी
हमेशा ही ऐसी रही
वैसी ही रहेगी
ये सभी मौत के हकदार हैं
कौन देगा इन्हें?
कृष्ण! कहां हो तुम?
कब आओगे?