रविवार, 30 अगस्त 2009

भीड़

भीड़
यहाँ, वहाँ
सभी जगह व्याप्त है।

अपने में,
विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों को समेटकर
कितनी अशान्त है।

भीड़ का एक व्यक्ति दूसरे से
हर बात में
कितना भिन्न है।

परन्तु
यह आवाज़ तो हर तरफ से आती है
'मुझे', 'यहाँ' और 'इस तरफ'।