गुरुवार, 11 नवंबर 2010

अपने आप से नाराज़ हूं मैं

नाराज़ हूं मैं
बहुत नाराज़ हूं मैं
तुमसे नहीं, किसी और से नहीं
बस अपने आप से नाराज़ हूं मैं

क्यों नाराज़ हूं मैं?
जानता नहीं हूं मैं
मगर बहुत नाराज़ हूं मैं

मेरा कहा किसी ने सुना नहीं?
मेरा कहा किसी ने किया नहीं?
नहीं नहीं ऐसा नहीं है
मैंने कुछ भी कहा ही नहीं है
फिर भी बहुत नाराज़ हूं मैं

कुछ चाहा मिला नहीं?
नहीं मैंने कुछ चाहा ही नहीं
जो मिला, जितना मिला
बस उसी में खुश
पर फिर भी न जाने क्यों
बहुत नाराज़ हूं मैं

कहां आ गया हूं मैं
क्यों आ गया हू मैं
नहीं जानता –
रास्ता कहां है, जाना किधर है?
कहां जाउंगा? नहीं जनता

मगर जानता हूं चला जाउंगा
इस अंधकार से निकल
अपनी मंजिल तक पहुंच जाउंगा

पर न जाने क्यूं
बहुत नाराज़ हूं मैं
बस अपने आप से नाराज़ हूं मैं

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

Nice poem Sir

Unknown ने कहा…

Very nice poem sir..I like it..

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