गुरुवार, 3 जनवरी 2019

जब मैं छोटा बच्चा था

जब मैं छोटा बच्चा था
सब कुछ कितना अच्छा था

घर में मां थीं, बाबूजी थे
दीदी-भैया सब के सब थे
प्यार सभी कितना करते थे
पाठशाला में अध्यापक थे
कितना कुछ वो बतलाते थे
- पढ़-लिख कर कुछ काम करो
अपना भी कुछ नाम करो
लोग कहेंगे कहां पढ़ा था
हम बोलेंगे यहां पढ़ा था

जो कुछ हमने जब पूछा उनसे
हमको खोज सोच कर बतलाया
और बार-बार फिर समझाया

दुनियां अपनी छोटी सी थी
इन सब का ही ध्यान हमें था
बाकी का कुछ ज्ञान नहीं था
हमको तब मालूम नहीं था
नून-तेल का चक्कर क्या है
आटे दाल का भाव कहां है
उछल कूद की, पूरी मस्ती
खाया - खेला चैन से सोये
समय-समय पर सब था मिलता
नहीं सताती हमें थी चिंता
छोटी अपनी दुनिया थी वो
कितनी सुंदर होती थी वो

कभी-कभी सपना बुनते थे
ये कर लेंगे, वो कर देंगे
दुनिया तो मुट्ठी में होगी
अपनी बस छुट्टी तब होगी

न मालूम, न पता था हमको
दुनिया सब कहते हैं किसको
होता क्या है? दिखता क्या है? 
ये अच्छा है, वो ठीक नहीं है
इससे सुनना है, उसको कहना है
ये करना है, वो नहीं है करना

इन बातों का ज्ञान हुआ जब
दुनिया पूरी बदल गयी तब
बचपन के दिन हवा हुये तब
नयी तरह के दिखते थे सब
दिन भर असमंजस में रहता हूं
- ये बदली है, मैं बदला हूं?
अकसर मैं सोचा करता हूं

कभी-कभी लगता है मुझको
दुनिया अब भी वहीं थमी है
हम ही बस अब बदल गये हैं

वो देखो वो छोटा बच्चा
वैसा ही है जैसे हम थे
वही कूद है, वही है मस्ती
वही मचलना, रोना-गाना
आटे दाल का कहां पता है
नून-तेल की नहीं है चिंता
मां है उसकी, बाबूजी भी
भाई-बहन हैं अध्यापक भी
सब कुछ उसका वैसा ही है
जैसे हम थे ये वैसे ही है

बस नहीं रहे हैं हम अब बच्चे
अब हम मां/बाबूजी, वो है बच्चा
दुनिया अब भी वैसी ही है
हम सब कितने बदल गये हैं

दुनिया अब भी वैसी ही है
हम सब ही तो बदल गये है
हम सब ही तो बदल गये हैं