शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

झूंठ को अपनायें

झूंठ कितना प्यारा होता है
हसीन दिलकश जांनशीन होता है
छुपा देता है सच को
परदे में रखता है
सामने आने से रोक देता है
जितना चाहें दिखाता है
बाकी अपने में छिपा लेता है

सच ना जाने कैसा हो
कड़वा, भयानक, डरावना, घृड़ित
ना जाने कैसा हो
हम डर जायें?
सहम जायें?
ग़म से मर जायें
न जाने हम क्या कर जायें
अगर सच के सामने आ जायें

मेरी माने सच को रहने दें
झूंठ को अपनायें
ये कलयुग की संजीवनी है
इसे पनपायें बढायें
बस झूंठ को अपनायें