हर्ष कुमार की कविताएं
यह मेरी कविताओं का छोटा संग्रह है। अपने विचार जरूर व्यक्त करें मुझे प्रसन्नता होगी।
गुरुवार, 19 नवंबर 2009
आदमी
सुबह से शाम तक
कोल्हू के बैल सा पिसता
आदमी, चला जाता है
तपती रेत पर दोपहर को
धूप में, अपने पके बाल लिये
अपना खून पसीना एक करने।
अपनी जी तोड़ मेहनत के बाद भी
जीता है निस्तेज, संध्या के सूर्य सा
पर ऐसे नहीं
पहले वह मरता है,
फिर जीता है।
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