सत्य की पहुँच से दूर है, जहाँ हूँ मैं।
जहाँ हूँ मैं वहाँ कोई आवाज़ नहीं आती
नहीं आती है कोई चीख किसी की
किसी की सुनता नहीं मैं अकेला हूँ
मैं अकेला हूँ, मेरे साथ नहीं है कोई
है कोई नहीं यहाँ, मेरी आत्मा भी नहीं है
नहीं है मेरा ज़मीर, मर गया है
गया है सब कुछ कहाँ? मुझे नहीं पता
नहीं पता - कौन हूँ मैं, क्यों हूँ?
क्यों हूँ? जहाँ परछाईं भी नहीं सत्य की।