गुरुवार, 13 मार्च 2008

समुद्र की लहरें

समुद्र की लहरें
कितने जोश में
कितने वेग से
चली आतीं हैं
इतराती, मंडराती
किनारे की ओर।

और रह जातीं हैं
अपना सर फोड़कर
किनारे की चट्टानों पर।
लहर खत्म हो जाती है
रह जाता है -
पानी का बुलबुला
थोड़ा सा झाग।

लहरें निराश नहीं होतीं
हार नहीं मानतीं ।
चली आती हैं
बारबार, निरंतर, लगातार
एक के पीछे एक।

एक दिन सफल होतीं हैं
तोड़कर रख देतीं हैं
भारी भरकम चट्रटान को
पर फिर भी शान्त नहीं होतीं
आराम नहीं करतीं।

इनका क्रम चलाता रहता है।
चट्रटान के छोटे छोटे टुकड़े कर
चूर कर देतीं हैं -
उनका हौसला, उनके निशान।
बना कर रख देतीं हैं
रेत
एक बारीक महीन रेत
समुद्र तट पर फैली
एक बारीक महीन रेत।