प्रेम द्विवेदी बोला था
- सत्य वचन हो, कर्तव्यनिष्ठ हो
परोपकार में ध्यान लगाओ
कथनी-करनी एक बना लो
जो करना हो वो बोलो
जो बोलो वो कर डालो”
मंत्र हमेशा साथ रहा यह
अपनाया इसको, जीवन में ढ़ाला।
कभी-कभी मैं थक जाता हूँ
निराश अकेला सोचा करता हूँ
- वो सच बोला था ?”
देख रहा हूँ वो भेड़िये
जो छुपे भेड़ की खाल ओढ़कर
यहाँ-वहाँ पर खड़े हुये हैं।
वो देखो वे श्वान वहाँ पर
तैयार ताक में खड़ा हुआ है
झपट पकड़ लेगा वो बिल्ली
जो बैठी है घात लगाकर
उस चूहे को ताक रही है।
वो मदमस्त चला आता है हाथी
चूर नशे में तनकर कितना
कुचल-मसलकर रख देगा
कहीं कोई जो रस्ता रोकेगा।
वो देखो, वो गिद्ध वहाँ बैठे कितने हैं
मरे गिरों को भी नोचेंगे।
वो दूर सिंह चला आता है निर्भय
जब आता है उसके मन में
मार गिरा देता है, खा जाता है
नहीं किसी का डर है उसको
बेताज बादशाह बन बैठा है
कौन उसे गद्दी से खींचेगा?
कौन उसे रोके-टोकेगा?
कौन नकेल लगा पायेगा?
वो घोड़ा दौड़ रहा हिरनों के पीछे
ले मालिक को ऊपर अपने
खुद मांस-मछली कभी नहीं ये खाता
पर मालिक से है उनको मरवाता
मालिक उसका है अजब निराला
खेल-खेल में मारेगा
चमड़ी में भूसा भरवा देगा।
नहीं किसी का डर है उसको
नहीं किसी से प्रेम है उसको
मैं जब देखा करता हूँ यह सब
सोचा करता हूँ -
प्रेम द्विवेदी सच बोला था”
तुमको क्या लगता है -
वो सच बोला था ?”
- सत्य वचन हो, कर्तव्यनिष्ठ हो
परोपकार में ध्यान लगाओ
कथनी-करनी एक बना लो
जो करना हो वो बोलो
जो बोलो वो कर डालो”
मंत्र हमेशा साथ रहा यह
अपनाया इसको, जीवन में ढ़ाला।
कभी-कभी मैं थक जाता हूँ
निराश अकेला सोचा करता हूँ
- वो सच बोला था ?”
देख रहा हूँ वो भेड़िये
जो छुपे भेड़ की खाल ओढ़कर
यहाँ-वहाँ पर खड़े हुये हैं।
वो देखो वे श्वान वहाँ पर
तैयार ताक में खड़ा हुआ है
झपट पकड़ लेगा वो बिल्ली
जो बैठी है घात लगाकर
उस चूहे को ताक रही है।
वो मदमस्त चला आता है हाथी
चूर नशे में तनकर कितना
कुचल-मसलकर रख देगा
कहीं कोई जो रस्ता रोकेगा।
वो देखो, वो गिद्ध वहाँ बैठे कितने हैं
मरे गिरों को भी नोचेंगे।
वो दूर सिंह चला आता है निर्भय
जब आता है उसके मन में
मार गिरा देता है, खा जाता है
नहीं किसी का डर है उसको
बेताज बादशाह बन बैठा है
कौन उसे गद्दी से खींचेगा?
कौन उसे रोके-टोकेगा?
कौन नकेल लगा पायेगा?
वो घोड़ा दौड़ रहा हिरनों के पीछे
ले मालिक को ऊपर अपने
खुद मांस-मछली कभी नहीं ये खाता
पर मालिक से है उनको मरवाता
मालिक उसका है अजब निराला
खेल-खेल में मारेगा
चमड़ी में भूसा भरवा देगा।
नहीं किसी का डर है उसको
नहीं किसी से प्रेम है उसको
मैं जब देखा करता हूँ यह सब
सोचा करता हूँ -
प्रेम द्विवेदी सच बोला था”
तुमको क्या लगता है -
वो सच बोला था ?”