कल गांधी के देश में
मानवता शर्म से मर गयी,
दानवता भी रो पड़ी
गर्म खून उबाल खा गया,
सड़क पर उतर गया
हाकिमों को गुहार की
- क्यों खून सर्द हुआ है तुम्हारा
जनता रोती है, तुम सोते हो?
क्यों नहीं कुछ करते हो ?
कानों में उँगली हैं डाली
मुंह पर ताला लगा लिया है
बुरा नहीं कुछ सुनते हैं हम
बुरा नहीं हम देखा करते
देश की राजधानी में
एक अनहोनी बात हो
गयी
भयानक दुर्घटना हो
गयी
कुछ दरिंदों ने एक
अबला को धर दबोचा
कैसे कहूं क्या किया, क्या ना किया
वो रावण को पीछे छोड़
गये
दु:शासन से आगे बढ़
गये मानवता शर्म से मर गयी,
दानवता भी रो पड़ी
जनता ने सुना, सकते में आ गये
सब सन्न रह गये गर्म खून उबाल खा गया,
सड़क पर उतर गया
हाकिमों को गुहार की
- क्यों खून सर्द हुआ है तुम्हारा
जनता रोती है, तुम सोते हो?
क्यों नहीं कुछ करते हो ?
बड़ा दरोगा आगे आया
बोला –
हम हैं अहिंसा के
सैनिक,
हम हैं गांधी के चेले
आंखों को हमने बंद
किया हैकानों में उँगली हैं डाली
मुंह पर ताला लगा लिया है
बुरा नहीं कुछ सुनते हैं हम
बुरा नहीं हम देखा करते
मैंने माथा ठोका, सर पीट अपना
रोया, फिर बोला मैं –
इतने मति अंध नहीं
हो तुम सब
बस शत-प्रतिशत पथ भ्रष्ट हुये हो
नहीं महात्मा के चेले तुम
तुम मदारी के बंदर हो
डमरू-डंडे पर छम-छम नाचोगे
चोर उच्चकों को छोड़ोगे
निर्दोषों को लाठी-गोली मारोगे
तुम सब तो केवल बंदर
हो
बस बंदर के बंदर हो
हे प्रजातंत्र के
रखवालों !
बंदरों पर काबू पा लो
लगाम कसो इन पर पूरी
पिंजड़े में इनको डालो
उस्तरे से काटी है
नाक इन्होंने
कल ये गर्दन सब की काटेंगे
दु:शासन पर काबू पा
लो
जनता रोती है, सहती है
आंखों से आंसू-आंसू
गिरते हैं
पर फिर भी चुप रहती
है
सैलाब उमड़ता आयेगा
सम्हलो, जनता की आवाज सुनो
जनता को समझो, पहचानो इनको,
दु:ख दर्द समझलो
इनका
जितनी हो पाये, सेवा करलो
वरना ढह जाओगे
जग जाओ, जग जाओ,
जनता रोती है तुम
सोते हो?
अब तो जग जाओ