क्या घटता है मन में मेरे।
कैसे जानेगा कोई
क्या घटता है मन में मेरे ?
सच अगर नहीं बोलूँ -
क्या घटता है मन में मेरे।
कैसे जानेगा कोई
क्या घटता है मन में मेरे ?
सच तो यह है
जो घटता है मन में मेरे
थोड़ा आगे या पीछे
वैसा ही कुछ घटता है
मन में तेरे।
उसे अगर हम लिख जायेंगे
अनुभव से अनुभव जुड़ जायेगा
नहीं घटेगा बढ़ जायेगा।
हम सब मिलकर लिख जायेंगे
नहीं घटेगा बढ़ जायेगा।