रविवार, 11 मई 2025

अवसर हाथ से जाने न देंगे

यह युद्ध नहीं चाहा हमने
यह युद्ध नहीं मांगा हमने

दुर्बुद्धी खड़ा है यहाँ सामने
सब अस्त्र-शस्त्र सामान लिए
जल थल नभ कब्जे में चाहे
और पैर तले हमको चाहे है

यह चाह रहा है क्या-क्या कुछ ?
 - धर्म त्याग दें हम सब अपना
   आधीन इसी के हम हो जायें
   मार काट फिर कर दें सबकी
   जो भी इसकी राह में आए
   हा-हाकार मचे धरा पर
   रावण राज्य बसे धरा पर

सात शताब्दी बाद का अवसर
हाथ से इसको जाने मत देना
पृथ्वीराज को याद करो
सात बार गौरी को पकड़ा
नाक धरा पर रगड़ी उसकी
पर अभय दान भी दे डाला
फिर एक बार वो जीत गया
मारा काटा उसने सबको
तहस-नहस सब कर डाला
नयी प्रथा की नीव धरी
सदियों जिसने राज किया

हार नहीं मानी पर हमने
और धर्म नहीं त्यागा हमने
सदियों हमने युद्ध किया
वीर प्रताप से डटे रहे
वीर शिवा सा युद्ध किया

इसे हटाया अंग्रेजों ने
उन्होंने फिर राज किया
मारा काटा कितनों को
कितनों को फांसी दे डाली
निहत्थों पर गोली भी मारी
पूरी ही अति कर डाली
फिर मिल कर हमें काम किया
सैंतालीस में उनको भगा दिया

मिल जुल कर हम सब बैठ गए
संविधान दे डाला खुद को
उसको पढ़ कर हम चलते हैं
नहीं किसी से कुछ कहते हैं
हम सब इसकी रक्षा करते हैं
और आंच नहीं आने देते हैं

दुर्बुद्धी कहीं भी कुछ भी कर ले
हम आंच नहीं आने देंगे
हम प्रताप के वंशज हैं
वीर शिवा का खून खौलता
दौड़ रहा है हम सब में
धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र सजा है
हम यहीं रहेंगे, यहीं लड़ेंगे
अभिमन्यु व घटोत्कच्छ बन
वीरगति हम पा जायें, अन्यथा
अर्जुन बन दुष्टों का वद्ध करेंगे
और विजयश्री हम पा जायेंगे
रामराज्य को बसा धारा पर
हम सपना पूरा कर जायेंगे

सात शताब्दी बाद का ये अवसर
हाथ से इसको, हम जाने न देंगे
हाथ से इसको, हम जाने न देंगे