शनिवार, 29 मार्च 2025

एक नपुंसक, गीदड़ वंशज

वो देखो 
वो मरियल गीदड़ 
वहाँ सभा में बैठ गया है 
समझ सुरक्षित खुद को बिल्कुल 
अनाप-शनाप कुछ बोल गया है 
शूर प्रतापी नर व्याघ्र का 
नाम सभा में लेकर उन पर  
थोड़ी कीचड़ उछाल गया है

वो नपुंसक है 
वीरों को तो नहीं जानता 
वीर श्रेष्ठ को कैसे जानेगा 
वो नहीं जानता, नहीं जानता 
राणा कुंभा के पौत्र को ?
नहीं जानता बिल्कुल भी वो 
महाराणा प्रताप के दादा को?
नहीं जानता उनके भी वो 

अस्सी घाव लगे थे फिर भी 
घमासान जो लड़ता रहता 
आतताई को धूल चटाता 
नाक धरा पर घिसता उनकी 
सारे जग में नाम कमाता 
राणा सांगा कहलाता है  
ये नपुंसक, गीदड़ वंशज है 
कैसे जानेगा उनको ?

ये तो सोच रहा है 
पूर्ण सुरक्षित ये बैठा है 
धर्म ग्रंथ में नहीं लिखा है 
काटो उसको, जो बोले उल्टा 
फिर चिंता कैसी, डर काहे का 
जो मन आएगा, बोलेगा

ये नहीं जानता प्रथा हमारी 
हम चुप रहते हैं 
सौ तक गिनते, चुप रहते हैं 
फिर चक्र सुदर्शन चल जाता है 
शिशुपाल का वध होता है 

इस नपुंसक गीदड़ को समझा दो 
जो पाप किया इसने, समझा दो 
तुरंन्त क्षमा की भीख, ये मांगेगा  
नाक धरा पर भी रगड़ेगा  

सबको याद रहे हम चुप हैं 
बस सौ तक गिनते चुप हैं 
हम चुप हैं