शनिवार, 29 दिसंबर 2012

शर्म करो

बंदर आपस में लड़ते रह गये और वो स्वर्ग चली गयी
कुछ मुंह शर्म से लाल हो गये कुछ पर कालिख पुत गयी
 

गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

कृष्ण! कहां हो तुम?


हे कृष्ण !
वो चीत्कार सुनी थी तुमने?
कहां थे तुम?
द्रोपदी अनाथ हो गयी
दुशासन जीत गया
दुर्योधन की आत्मा प्रसन्न हो गयी
रावण बहुत पीछे रहा गया

अब तो आ जाओ,
अपना सुदर्शन चक्र लिये
न्याय करो, आतताई को दंड दो
या भेज दो भीम और अर्जुन को
दुशासन की छाती फाड देंगे
उसकी भुजा उखाड़ फेंकेंगे
कर्ण की जीभ काट देंगे
दुर्योधन की जांघ तोड़ देंगे

भीष्म और द्रोण?
वो तो मौन थे, सदा की तरह 
कुरु सभा?
वो तो नपुंसक थी
मूक दर्शक थी
हमेशा ही ऐसी रही
वैसी ही रहेगी
ये सभी मौत के हकदार हैं
कौन देगा इन्हें?

कृष्ण! कहां हो तुम?
कब आओगे? 

सोमवार, 24 दिसंबर 2012

जगो, जनता रोती है

कल गांधी के देश में
देश की राजधानी में
एक अनहोनी बात हो गयी
भयानक दुर्घटना हो गयी

कुछ दरिंदों ने एक अबला को धर दबोचा
कैसे कहूं क्या किया, क्या ना किया
वो रावण को पीछे छोड़ गये
दु:शासन से आगे बढ़ गये
मानवता शर्म से मर गयी,
दानवता भी रो पड़ी

जनता ने सुना, सकते में आ गये
सब सन्न रह गये
गर्म खून उबाल खा गया,
सड़क पर उतर गया  
हाकिमों को गुहार की
-    क्यों खून सर्द हुआ है तुम्हारा
जनता रोती है, तुम सोते हो?
क्यों नहीं कुछ करते हो ?

बड़ा दरोगा आगे आया
बोला –
हम हैं अहिंसा के सैनिक,
हम हैं गांधी के चेले
आंखों को हमने बंद किया है
कानों में उँगली हैं डाली
मुंह पर ताला लगा लिया है
बुरा नहीं कुछ सुनते हैं हम
बुरा नहीं हम देखा करते

मैंने माथा ठोका, सर पीट अपना
रोया, फिर बोला मैं –
इतने मति अंध नहीं हो तुम सब
      बस शत-प्रतिशत पथ भ्रष्ट हुये हो
      नहीं महात्मा के चेले तुम
तुम मदारी के बंदर हो
डमरू-डंडे पर छम-छम नाचोगे
चोर उच्चकों को छोड़ोगे
निर्दोषों को लाठी-गोली मारोगे
तुम सब तो केवल बंदर हो
बस बंदर के बंदर हो

हे प्रजातंत्र के रखवालों !
बंदरों पर काबू पा लो
लगाम कसो इन पर पूरी
पिंजड़े में इनको डालो
उस्तरे से काटी है नाक इन्होंने
कल ये गर्दन सब की काटेंगे
दु:शासन पर काबू पा लो
जनता रोती है, सहती है
आंखों से आंसू-आंसू गिरते हैं
पर फिर भी चुप रहती है

सैलाब उमड़ता आयेगा
सम्हलो, जनता की आवाज सुनो
जनता को समझो, पहचानो इनको,
दु:ख दर्द समझलो इनका
जितनी हो पाये, सेवा करलो 
वरना ढह जाओगे

जग जाओ, जग जाओ,
जनता रोती है तुम सोते हो?
अब तो जग जाओ


गुरुवार, 15 नवंबर 2012

बाल साहब

बाल बाल सब बच गये, किया बहुत गुणगान
बाल साहब ने तेरानवे में, जब किया था ऐलान

किया था ऐलान, बहुत दूर तक डंका बाजा
बरसों उसको याद रखेंगे, हों रंक या राजा

शेर सरीखा निडर अकेला, वो सबके दिल पर राज करे
नहीं किसी का डर है उसको, वो लेखनी से ठाँ – करे

ऊधव से पूछा मैंने - क्या है ये सब? माधव कैसा है?
बोला - दिल का भोला है कितना, ये सब उसकी माया है

गुरुवार, 24 मई 2012

यह जगह अजब निराली है

पिछ्ले सप्ताह मैं जयपुर गया था और वहां एक निराली जगह देखी
शब्दों में उसका बयां मुश्किल है. यह एक कविता वहीं लिखी थी
यह शायद आपको बता पाये कि यह जगह कैसी है. आप नैट पर
उसे देखें http://www.treehouseresort.in


यह जगह अजब निराली है

-   पेड़ों पर रहते हैं
          लकड़ी के घर में
          चिड़ियों के जैसे

कमरे में हो लगता है घर में हो
बाहर निकलो जंगल सा लगता है
पर इंतज़ाम सभी यहां रहता है
जंगल में मंगल सा लगता है

चिड़ियों को देखो इतराते पेड़ों पर
अठखेली करतीं हैं कितनी
सुन लो सब बातें उनकी
खुश हैं कितनी गाना गातीं
मस्ती में उड़तीं ऊपर, नीचे आतीं 

तुम भी आओ दौड़ लगाओ
उछलो कूदो गाना गाओ
सांस को अपनी, जोर से खींचो
अच्छी है ये, साफ भी कितनी
रोज की मरा-मारी छोड़ो
आफिस भूलो, घर को त्यागो
एक बार फिर खुशी से जी लो
अपने मनको हलका करलो
अपनी बैट्री चार्ज भी करलो

मनको अपने हलका करलो
मनको अपने हलका करलो

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

झूंठ को अपनायें

झूंठ कितना प्यारा होता है
हसीन दिलकश जांनशीन होता है
छुपा देता है सच को
परदे में रखता है
सामने आने से रोक देता है
जितना चाहें दिखाता है
बाकी अपने में छिपा लेता है

सच ना जाने कैसा हो
कड़वा, भयानक, डरावना, घृड़ित
ना जाने कैसा हो
हम डर जायें?
सहम जायें?
ग़म से मर जायें
न जाने हम क्या कर जायें
अगर सच के सामने आ जायें

मेरी माने सच को रहने दें
झूंठ को अपनायें
ये कलयुग की संजीवनी है
इसे पनपायें बढायें
बस झूंठ को अपनायें

क्यों पूछा तुमने मुझसे

क्यों पूछा तुमने मुझसे –
क्या प्यार मुझे है तुमसे?


उठते – बैठते छवि तुम्हारी
आखों में रहती है मेरे
तुम मेरी सांसों में हो
मेरे प्राणों में बसती हो
नहीं पता क्या तुमको ?
कितना प्यार मुझे है तुमसे?

फिर मुझसे क्यों पूछा तुमने –
क्या प्यार मुझे है तुमसे?